हाईकोर्ट प्रयागराज

धूमनगंज में पुलिस का नही, अपराधियों का इकबाल चलता है ~ हाईकोर्ट

लोकतंत्र में मीडिया का महत्व पूर्ण स्थान है इसलिए मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। अतः मीडिया को किसी भी सरकार की कानून व्यवस्था पर हमेशा आलोचनात्मक विश्लेषण करते रहना चाहिए। मीडिया को सरकार की खामियों को उजागर करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। वर्तमान में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी सरकार व मीडिया हाउसों के लिए भी नसीहत है। वास्तव में मीडिया संस्थानों द्वारा सरकारी मशीनरी को महिमा मंडित करने के बजाए उचित स्तर तक आलोचना भी करनी चाहिए। जब विपक्ष कमजोर या फिर किसी भी कारण से डरा हुआ हो तो मीडिया की भूमिका विपक्ष के तौर पर और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। ~संजय भाटी

उत्तर प्रदेश में नौबत यहां तक आ गई है कि जो बात उत्तर प्रदेश सरकार के बारे में मीडिया को कहनी चाहिए। उसे हाईकोर्ट कह रहा है। ताज्जुब तो इस बात का है कि उत्तर प्रदेश सरकार की कानून व्यवस्था और पुलिस की कार्य शैली पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की बड़ी टिप्पणी के बाद भी मीडिया पुलिस और सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने की जहमत उठाने को तैयार नही है।

हाल ही में हुए उमेश पाल हत्या कांड के बाद अपनी कार्रवाई के दौरान हाईकोर्ट का कहना था कि जिस थाना क्षेत्र धूमनगंज में उमेश पाल की हत्या की गई है, वहां पुलिस (योगी सरकार) का नही बल्कि अपराधियों (अतीक अहमद) का इकबाल (राज) चलता था।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डीके सिंह ने अपने आदेश में कहा कि धूमनगंज में पुलिस का नही, अतीक अहमद का इकबाल चलता है।

 

दरअसल न्यायमूर्ति डीके सिंह ने यह टिप्पणी दिवंगत उमेश पाल द्वारा विधायक राजू पाल व उसके दो सुरक्षा गार्डों की हत्या के आरोपी फरहान की जमानत को खारिज करने के लिए दी गई याचिका पर जमानत खारिज करते हुए दी।

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