भ्रष्टाचार का सम्राज्य
शराब के ओवर रेटिंग और ब्लैक में बिक्री की समस्या की जड़ भ्रष्टाचार में डूबी सरकारी मशीनरी
हम अपने पाठकों को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद में पत्रकारिता पूरी तरह से मैनेज है, जिसके चलते पत्रकारों द्वारा इस तरह के मामलों में भ्रष्टाचार में डूबे आबकारी अधिकारियों और ठेका मालिकों का समर्थन किया जाता है क्योंकि पत्रकारों की भी मंथली बंधी हुई हैं। जिन पत्रकारों द्वारा ईमानदारी से खबरें प्रकाशित की जाती हैं, उन पर आरोप प्रत्यारोप कर उनका चरित्र हनन करने के प्रयास किए जाते हैं ~ संजय भाटी
गौतमबुद्धनगर। ऐसा कौन सा दिन है ? जिस दिन गौतमबुद्धनगर के सरकारी ठेकों से देशी, अंग्रेजी शराब और बीयर के ओवर रेटिंग की कोई न कोई वीडियो ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर वायरल न होती हो। यही हाल गाजियाबाद का भी है। आखिर कार ऐसा क्यों है ?
इसके अनेक बड़े कारण हैं। एक तो यह कि अधिकांश ठेकों के मालिकों द्वारा ओवर रेटिंग में शराब की बिक्री करवा कर अतिरिक्त कमाई की जाती है। ठेका मालिक ऐसा क्यों करते हैं। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि उन्हें पुलिस-प्रशासन से लेकर नेता नगरी और पत्रकारों को न केवल शराब और बीयर आदि की बोतलें बांटनी पड़ती हैं। बल्कि छोटी-छोटी बातों के लिए नगदी भी देनी पड़ती है। वैसे भी वर्तमान में अधिकांश ठेकों के मालिकों द्वारा अपने मुनाफे के लिए भाजपा की शरण ले रखी है। अधिकारियों की हिम्मत ही नही है कि किसी प्रकार की अनियमितताओं के लिए किसी ठेका मालिक पर कोई ठोस कार्रवाई कर दें। कार्रवाई के नाम पर गरीब कर्मचारियों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।
सरकारी मशीनरी उत्तर प्रदेश सरकार के कंट्रोल से बाहर, भाजपा को मिले जन समर्थन और मीडिया मैनेजमेंट का जमकर लुत्फ उठा रहे हैं अधिकारी👇
दूसरे सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सरकारी मशीनरी भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार के कंट्रोल से बाहर है। इसलिए सरकारी मशीनरी स्वयं अतिरिक्त कमाई करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति पर चल रही है। सरकारी मशीनरी उत्तर प्रदेश में भाजपा और योगी आदित्यनाथ के नाम पर मिले जन समर्थन और मीडिया मैनेजमेंट सिस्टम का भरपूर आनंद ले रहे हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। इसमें कोई संदेह नही है।
तीसरा बड़ा और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि गौतमबुद्धनगर में ठेकों से शराब और बीयर आदि के सर्वाधिक ग्राहक गरीब तबके के प्रवासी मजदूर वर्ग के हैं। जो न केवल शराब के ठेकों से ओवर रेटिंग में शराब खरीदने को मजबूर हैं बल्कि हर स्तर पर उसके दोहन में कोई कोर कसर नही है। गरीब प्रवासी मजदूरों को NCR में अपने और पराए सभी बकरी और भेड़ की तरह दुह व मुंड लेते हैं। जो तबका अपने परिवार की रोटी और कपड़े के पैसे में से कटत करके शराब की खरीददारी करता हो भला उसकी ओवर रेटिंग की शिकायतें कौन सुनेगा। शराब के ओवर रेटिंग की बात छोड़ दीजिए उसके मानवीय मूल्यों (मानवाधिकारों) से जुड़े मुद्दों पर भी कोई नही सुनता।
अब आप यह भी समझ रहे होंगे कि शराब अधिकांश उन प्रवासी मजदूरों को ओवर रेटिंग में दी जाती है। जो भाषा और कपड़े आदि से पहचान लिए जाते हैं कि खरीददार गरीब और प्रवासी है। शराब और बीयर के ठेकों के मालिकों द्वारा क्षेत्रीय नवयुवकों और छूट भैय्या नेता नगरी पर भी खर्च करके उनका संरक्षण प्राप्त कर लिया जाता है। यह बात भी बिल्कुल सही है कि ठेकों पर दबंग व पहलवान/बांऊंसर टाइप के लोगों की सेवा छोटे मोटे विरोध से निपटने के लिए परमानेंट या जरुरत पड़ने पर ऑन कॉल ली जाती।
अब आप समझ सकते हैं कि पांच से दस रुपए के ओवर रेट के लिए जिले के उच्चाधिकारियों तक तो कोई शिकायत करने जाएगा नही। थाने-चौकियों को बड़े-बडे मामलों से ही फुर्सत नही होती। न ही कोई शिकायत करने की हिम्मत जुटा सकता है। किसी गरीब प्रवासी मजदूर ने भूल से उत्तर प्रदेश में सेवा के लिए तत्पर रहने वाली 112 सेवा पर कॉल कर भी दी तो पहले तो सेवा का नम्बर लगता ही बहुत मुश्किल से है। जब तक 112 सेवा के लिए पहुंचेगी तब तक ठेके पर तैनात फौज लात-घूंसों से सेवा करेगी बाद में उत्तर प्रदेश की 112 भी ऐसे ही सेवा पानी में लग जाएगी। मतलब साफ है कि पुलिस में इस तरह की कोई शिकायत करने की ग़लती कर दी तो सीधे लात-घूंसे और हवालात से जेल तक का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
कथित तौर पर लोकतंत्र के चोथे स्तंभ होने का दंभ भरने वाले मीडिया संस्थानों और उनके सिपाहियों का चेहरा भी देखें👇
कॉर्पोरेट और बड़े मीडिया संस्थानों को सरकारों द्वारा विज्ञापन से मैनेज रखने के साथ-साथ सरकारी विभागों के अधिकारियों द्वारा उनके पत्रकारों को अपने भ्रष्टाचार की दुकानों का सम्मानित साझेदार बना कर रखा जाता है। पाठक गण कम शब्दों को ही ज्यादा समझें। क्योंकि हम इस पर बार बार लिखते व मिलीभगत को खोलते रहते हैं। कमिश्नरेट पुलिस के मुखिया पत्रकारों को दावत देते रहते हैं। ये सब बड़ी बेशर्मी से खुला खेल है। इसके फोटो विभिन्न पत्रकारों के द्वारा अपनी खुद की अधिकारियों तक नजदीकी पहुंच और स्थिति को दर्शाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर समाज में प्रचारित करने के लिए स्वयं फेसबुक, ट्विटर आदि प्रसारित भी किया जाता है। इसका उद्देश्य बताने की आवश्यकता शायद हमारी नजर में तो नही है, इतना तो पाठक गण समझ ही सकते हैं।
यहां हम केवल आबकारी विभाग के संदर्भ में बात कर रहे हैं। आबकारी विभाग छोटे-बडे पत्रकारों की पूजा अर्चना होली, दीवाली या पत्रकारों की डिमांड विशेष अवसरों पर करता रहता है। आबकारी विभाग द्वारा सम्मानित पत्रकार साथियों को ठेकों के मालिकों से सीधे तौर पर शराब, बीयर और नगदी सहित दूसरे सम्मान दिलाने के ऑप्शंस सहित खुद भी सेवा देने का ऑप्शन निकाल रखा है।
जारी…….