भ्रष्टाचार और पत्रकारिता
उगाही खोर पत्रकार भ्रष्टाचार में लिप्त पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के पालतू
अवैध और गैरकानूनी धंधों पर संबंधित विभागों द्वारा विधिवत कानूनी कार्रवाई की जाएगी तो अवैध उगाही संभव ही नही होगी। सरकारी मशीनरी द्वारा शिकायत कर्ताओं की वीडियो तक को झूठलाया जाता है ~ संजय भाटी
उत्तर प्रदेश में आए दिन कहीं न कहीं पत्रकारों द्वारा अवैध उगाही के मामले सामने आते रहते हैं। इसका बड़ा कारण पुलिस-प्रशासन व सरकारी विभागों में फैला भ्रष्टाचार है। सरकारी विभागों में बैठे भ्रष्टाचारी ही अवैध धंधों और अवैध उगाही का बड़ा कारण हैं।
अब आप कहेंगे कि पत्रकारों द्वारा की जाने वाली अवैध उगाही से सरकारी मशीनरी या पुलिस का क्या मतलब है? पत्रकारों द्वारा की जा रही अवैध उगाही से सीधा मतलब पुलिस-प्रशासन से ही होता है। क्योंकि खुद पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों द्वारा अवैध धंधों के संचालकों से पत्रकारों को मैनेज करने की नसीहत देकर अवैध धंधों को संचालन कराया जाता है।
यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी गैरकानूनी काम के चलने की सूचना पुलिस या फिर संबंधित विभाग को दी जाती है तो पुलिस द्वारा गैरकानूनी गतिविधियों पर कानूनी कार्रवाई कर शिकंजा कसा जाना चाहिए। लेकिन वास्तव में ऐसा नही होता।
वास्तविकता तो यह है कि अवैध कारोबारियों को संबंधित विभाग के अधिकारियों द्वारा विरोध को मैनेज करने की नसीहत दे दी जाती हैं। इस बात का ज्ञान पेशेवर पत्रकारों और पुराने समाजसेवियों को भी बखूबी होता है। क्योंकि पत्रकार और समाजसेवी सरकारी मशीनरी से बहुत गहरा तालमेल रखते हैं।
अब आप समझ सकते हैं कि जब स्वयं पुलिस और जिम्मेदार सरकारी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अवैध धंधों पर कानूनी कार्रवाई करने के बजाए विरोध करने वाले पत्रकारों, समाज सेवकों, नेताओं और जन सामान्य को मैनेज कर विरोध को समाप्त करने की नसीहत दी जाएगी तो ही पत्रकारों या किसी भी दूसरे के द्वारा विरोध न करने की एवज में पैसे की मांग की जाएगी।
कई बार तो अवैध धंधों के संचालकों द्वारा स्वयं विरोध करने वालों को पैसे देने का ऑफर दिया जाता है। यही कारण है कि हर गली मोहल्ले में पत्रकारों, समाज सेवियों और नेताओं की मौजूदगी होने के बाद भी सभी अवैध धंधे खुलेआम चलते रहते हैं।