सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
सीवर की सफाई के दौरान मरने वाले लोगों के परिजनों को सरकार 30 लाख रुपये दें ~ सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत एक बार फिर आजादी से आज तक उपेक्षित वर्ग के मेहनतकशों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला देते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश दिए
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को देशभर में हाथ से मैला उठाने (मैनुअल स्केवेजिंग) की प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि इस प्रथा से जुड़े लोग लंबे समय से ‘बंधुआ’ बनकर रह रहे हैं। वे व्यवस्थित रूप से अमानवीय परिस्थितियों में फंसे हुए हैं।
देश की सर्वोच्च अदालत ने हाथ से मैला धोने की प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को 14 सूत्री दिशानिर्देश जारी किए हैं। जिसमें यह सबसे अहम आदेश दिया है कि सीवर की सफाई के दौरान मरने वाले लोगों के परिजनों को सरकार 30 लाख रुपये और स्थायी दिव्यांग होने वालों को 20 लाख रुपये मुआवजा दे। अन्य किसी तरह से आंशिक विकलांगता के लिए 10 रुपए मुआवजा दें। हाथ से मैले की सफाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक दिशा-निर्देश दिए।
जस्टिस अरविंद कुमार एवं जस्टिस एस. रवींद्र भट की बेंच ने हाथ से मैला साफ करने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमारी लड़ाई सत्ता की ताकत के लिए नहीं है। यह आजादी की लड़ाई है। यह मानव व्यक्तित्व को पुनः प्राप्त करने की लड़ाई है।’ जस्टिस भट ने इस दौरान बाबा साहेब बी. आर. आंबेडकर को उद्धृत किया।
जस्टिस भट ने यह भी कहा कि ‘सच्चे भाईचारे’ को साकार करना सभी का कर्तव्य है। उन्होंने कहा, “यह अकारण नहीं है कि हमारे संविधान में गरिमा और भाईचारे के मूल्य पर बहुत जोर दिया गया है। लेकिन इन दोनों के लिए, अन्य सभी स्वतंत्रताएं कल्पना हैं। अपने गणतंत्र की उपलब्धियों पर गर्व करने वाले हम सभी को आज जागना होगा, ताकि वह अंधेरा छंट जाए।”
“हममें से सभी को समानता के वादे पर खरा उतरना होगा”
साथ ही जस्टिस भट ने कहा, “यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2) जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज के सभी वर्गों को जो प्रतिबद्धता दी है, उसके लिए हम में से प्रत्येक को अपने वादे पर खरा उतरना होगा। केंद्र और राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि हाथ से मैला साफ करने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। संविधान के अनुच्छेद 15(2) में कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
मामले की अगली सुनवाई 1 फरवरी 2024 को होगी।