गौतमबुद्धनगरविचारक

एक दिन के शहंशाह?

 

_-राजेश बैरागी-_

पत्रकार साथी मुकेश गुप्ता ने एक वीडियो वायरल किया जिसमें एक महिला सरे बाजार अपने पति और उसकी प्रेमिका के साथ मारपीट कर रही है। दरअसल पति अपनी प्रेमिका को बाजार में करवाचौथ की खरीदारी करा रहा था। एक और वीडियो प्राप्त हुई जिसमें करवाचौथ पर पत्नी ने साड़ी न दिलाने पर कपड़ों की दुकान पर ही पति की पिटाई कर दी। किसी रसिक हृदय ने नीचे लिखा,’करवाचौथ के रुझान आने शुरू हो गये हैं।’ हिंदू या सनातन धर्म में इस परंपरा की शुरुआत कब हुई, मैं नहीं जानता।

जब संचार और परिवहन के साधनों का सर्वथा अभाव था,उस समय रोजगार और व्यापार के लिए दूर देश जाने वाले पुरुषों की सलामती के लिए स्त्रियां तब भी ईश्वर से प्रार्थना करती ही थीं। मालूम नहीं वह दिन करवाचौथ ही होता था क्योंकि इस दिन ही दूर देश रवाना होने का मुहूर्त होने का कोई प्रमाण नहीं है।

वर्ष में एक दिन पति की आयु, स्वास्थ्य, स्वभाव, सच्चरित्रता और सलामती के लिए व्रत उपवास रखने के सांकेतिक मायने हो सकते हैं।उस सुहागिन ने सरे बाजार अपने पति और उसकी प्रेमिका को क्यों पीटा? क्या वह पति को प्रसन्न नहीं देखना चाहती है? साड़ी न दिलाने वाले पति को कपड़े की दुकान पर ही लतियाने वाली महिला का करवाचौथ व्रत किस स्तर का है?

मित्र परिचित आपस में ठिठोली करते हुए कहते हैं,’अरे आज तो करवाचौथ है।’ यह करवाचौथ का कैसा अर्थ है? इस युग में सीता, अनुसूया, सावित्री या राम लक्ष्मण जैसे परम आदर्श चरित्रों की अपेक्षा ना भी करें तो भी पति पत्नी के बीच जो समर्पण और विश्वास का अकथनीय संबंध है, उससे कैसे इंकार किया जा सकता है।

करवाचौथ उस अविस्मरणीय संबंध के स्मरण का दिवस है। ऐसे ही जैसे सबकुछ याद होने पर भी सबक को पुनः पुनः फेरा जाता है। इसके अतिरिक्त इस त्यौहार का न कोई अर्थ है और न अस्तित्व।

(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नोएडा)

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