उत्तरप्रदेशभ्रष्टाचार
आओ सब मिलकर मीडिया मैनेजमेंट से चल रहे भ्रष्टाचार और पाखंड की लंका जला दे
जन सरोकार से जुड़े पत्रकारों को कॉरपोरेट मीडिया से जुड़े अधिकांश पत्रकारों, भ्रष्टाचार में अकंठ डूबी सरकारी मशीनरी, ढकोसले बाज सत्ता रुढ दलों के नेताओं और उनके संरक्षित सफेद पोश अपराधियों से निहत्थे लड़ने पड़ता है। इसलिए कानूनी जानकारी व न्यायालयों में अपना पक्ष रखने के लिए अधिवक्ताओं का सहयोग जरूरी है ~ संजय भाटी
आप पत्रकार हैं या जन साधारण आप अपने ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्स ऐप पर सुप्रीम न्यूज पर प्रकाशित जनहित के मुद्दों को शेयर कर सुप्रीम न्यूज की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम न्यूज की मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं। आपके इस सहयोग के लिए हम आपके आभारी रहेंगे। हमारे किसी भी लेख पर हम किसी भी कॉपीराइट का दावा नही करते हमारे द्वारा प्रकाशित एक-एक शब्द राष्ट्रीयता और मानवता को समर्पित रहते हैं। आप हमारे लेखों को अपने मीडिया संस्थानों में अपने खुद के नाम से या सुप्रीम न्यूज व हमारे नाम से प्रकाशित कर सकते हैं ~ संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज
#Noida एनसीआर के पत्रकारों ने श्री संजय भाटी संपादक #सुप्रीम_न्यूज व जाकिर भारती सम्पादक #डिटेक्टिव_रिर्पोटर के नेतृत्व में अधिवक्ताओं के साथ पत्रकारों पर दर्ज हो रहे #फर्जी_मुकदमों के विषय में #चर्चा की गई.@SupremeNewsG @forpolicereform @AjaiBhadauriya@policemedianews pic.twitter.com/fbE2Y01A24
— Zakir Bharti (@zakir_bharti) October 14, 2022
सुप्रीम न्यूज 14/10/2022 गौतमबुद्धनगर।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार पोल खोलने वाले पत्रकारों को लगातार फर्जी मुकदमे दर्ज कर जेल भेज रही है। उत्तर प्रदेश भ्रष्टाचार और गैर-कानूनी गतिविधियों का केंद्र बन गया है। भाजपा को विपक्षी दलों के नेताओं से अधिक डर छोटे-छोटे पत्रकारों से है।
बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों को तो मैनेज कर लिया गया है। लेकिन छोटे-छोटे अखबारों व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के संपादकों और पत्रकारों को मैनेज करना सरकार के लिए बहुत कठिन होता है। क्योंकि सोशल मीडिया से जुड़े अधिकांश पत्रकारों का उद्देश्य धन कमाना नही होता। क्योंकि वे जन सरोकार से जुड़े हुए होते हैं।
मीडिया मैनेजमेंट का सीधा मतलब यह है कि बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों को विज्ञापन के रूप में मोटी रकम देकर उनसे मन माफिक खबर छपवाना। इस सब में अहम बात यह है कि सरकार द्वारा विज्ञापन के बदले दिया गए पैसों से बहुत से पत्रकारों का कोई लेना-देना नही होता। ये पैसा मीडिया संस्थानों के मालिकों को प्राप्त होता है। मैनेज हुए मालिकों द्वारा सरकार के लिए एजेंडे चलाने वाले पत्रकारों को मोटी तनख्वाह देकर रखा जाता है। इस तरह के पत्रकारों और संस्थानों को गोदी मिडिया कहा जाता है। गोदी मिडिया के पत्रकारों का कोई जन सरोकार नही होता।
कॉरपोरेट मीडिया संस्थानों में कार्यरत पत्रकारों को मोटी तनख्वाह के अलावा भ्रष्टाचारियों से नजराने के रूप में मिलने वाली अवैध नगदी, सुविधाएं और सेवाएं भी होते है। जो इनके कुछ खास स्थानीय पत्रकारों के माध्यम से इन तक पहुंचते हैं। जिसकी कुछ जूठन मात्र से ही इनके कुछ स्थानीय सहयोगी पत्रकारों को भी आप करोड़ों में खेलते देख सकते हैं। इनके स्थानीय सहयोगी पत्रकारों के पास लग्जरी गाड़ियों से लेकर शस्त्र लाइसेंस और बड़े-बड़े बंगले इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
बताते चलें कि विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित अखबारों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है। वर्तमान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के चलते आम आदमी की दखलंदाजी भी शामिल हो गई है
किन्तु इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया जा रहा है। क्योंकि दुनियाभर में मीडिया कॉरपोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। इसका मतलब यह है कि वास्तव में प्रेस स्वतंत्रत नही है। बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं। इसी वजह से वे विलासिता पूर्ण जीवनशैली के आदी हो जाते हैं। जिसे वे खोना नही चाहते। इसलिए वे अपने आकाओं के आदेशों का पालन करते हैं। जिसके चलते वे हमेशा अपने धन-दाताओं के तलवे चाटते हैं
अब आप समझ सकते हैं कि मीडिया मैनेजमेंट के कारण पत्रकारिता करने वाले सभी लोगों को जनता जनार्दन के सामने बेइज्जत होना पड़ता है। जिसके चलते बहुत से पत्रकार अपने संस्थानों से अलग हटकर छोटे और मंझले अखबारों का संचालन कर खबरों का प्रकाशन और प्रसारण कराने लगते हैं। वर्तमान में इस काम के लिए अधिकांश पत्रकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का उपयोग करते हैं।
असल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर इस तरह के पत्रकार ग्रुप बनाकर रखते हैं। इस लिए सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों/पत्रकारों द्वारा पलक झपकते ही बड़े से बड़े घपले-घोटालों को उजागर कर भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों की लंका में आग लगा दी जाती है। इसमें पत्रकारों द्वारा सबसे ज्यादा ट्विटर, वेबसाइटों, यूट्यूब चैनलों, फेसबुक और वाट्सअप का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह पत्रकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सरकार व मैनेजमेंट में शामिल मीडिया संस्थानों की वाट लगा कर रखते हैं।
जिसके चलते पत्रकारों का एक बड़ा हिस्सा जो मैनेज मीडिया संस्थानों के लिए काम करने के कारण जन समस्याओं को दबाने में सरकारों और सरकारी मशीनरी का सहयोग करता हैं। जिसे मेनस्ट्रीम मिडिया या वर्तमान में गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है।
गोदी मीडिया की कारगुज़ारियों की जानकारी छोटे मीडिया संस्थानों में कार्यरत पत्रकारों द्वारा ही जनता तक पहुंचाई जाती हैं। ऐसे में छोटे-छोटे अखबारों, पत्रिकाओं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर काम कर रहे पत्रकारों के कारण बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकारों और उनके आकाओं की हकीकत जनता को पता चल जाती है।
जिससे उनकी छवि बिगाड़ने लगती है। इस लिए कॉरपोरेट मीडिया संस्थानों में कार्यरत पत्रकार ही छोटे पत्रकारों के सबसे बड़े दुष्मन होते हैं।
अपनी और अपने आकाओं के डैमेज कंट्रोल करने के लिए छोटे स्तर के पत्रकारों को जेल भिजवाने में कॉरपोरेट मीडिया संस्थानों के पत्रकारों की अहम भूमिका होती है।
दूसरी ओर पुलिस-प्रशासन और दूसरे सरकारी विभागों व सत्ता रुढ दलों के नेताओं की पोल खोलने के कारण छोटे समाचार पत्र-पत्रिकाओं व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर जुड़े पत्रकार अधिकार सम्पन्न सरकारी मशीनरी व सत्तारुढ दलों के नेताओं के कोपभाजन बनते हैं।
इस कड़ी का अगला गणित भी समझना बहुत जरूरी है। किसी भी सरकार के शासन में सरकारी निर्माण कार्यों, खनन के ठेके आदि पार्टी के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के गुर्गों को ही मिलते हैं। सत्ता से सीधा संबंध होने के चलते ये संबंधित विभागों के अधिकारियों से मिलकर खुब घपले-घोटाले करते हैं। मलाईदार पदों पर सरकारी अधिकारियों,कर्मचारियों तक की पोस्टिंग सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं के चहेतों की ही होती है। जो भ्रष्टाचार में अकंठ डूबे रहते हैं।
ऐसे में जन समस्याओं को लेकर पत्रकारिता करने की कोई गुंजाइश नही बचती। लेकिन छोटे-छोटे अखबारों, पत्रिकाओं व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से जुड़े अधिकांश पत्रकार समाज के राजनीतिक रूप से उपेक्षित वर्ग के जुड़े होने के कारण उपेक्षित वर्ग की आवाज उठाते हैं। जिसके कारण उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। क्योंकि ये पत्रकार पूरे तंत्र की खामियों को उजागर करते हैं। ऐसे में सरकार व सरकारी तंत्र के विरोधी पत्रकारों पर सुनियोजित तरीके से चारों ओर से प्रहार किया जाता है। जिसके चलते फर्जी मुकदमों का दर्ज कर जेल भेजे जाना तो सबसे पहला कदम है। जनहित में पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों पर हमले करवाना। कभी-कभी तो पत्रकारों की हत्या तक करवा दी जाती है।
ऐसे में सरकार और सरकारी मशीनरी के चिट्ठे खोलने वाले पत्रकारों को सुरक्षा और कानूनी मदद देने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए सुप्रीम न्यूज के संपादक श्री संजय भाटी द्वारा लम्बे समय से एक मुहिम चलाई जा रही है।
जिसके तहत उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर दर्ज किए गए फर्जी मुकदमों की जनपद न्यायालयों व उच्च न्यायालय इलाहाबाद में परवी को लेकर श्री संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज व जाकिर भारती संपादक डिटेक्टिव रिर्पोटर अलीगढ़ के नेतृत्व में पत्रकारों ने अधिवक्ताओं से चर्चा की।
इस मौके पर श्री चेतनराम सिंह एडवोकेट, श्री संदीप कुमार जोगी एडवोकेट, श्री धर्मेन्द्र भाटी एडवोकेट, श्री प्रवीण अवाना एडवोकेट, श्री ब्रजेश शास्त्री एडवोकेट, श्री प्रवीण कुमार एडवोकेट, श्री जितेन्द्र मावी एडवोकेट, श्री मनोज नागर एडवोकेट, श्री नीरज कुमार एडवोकेट, श्री सैंकी भाटी एडवोकेट ने पत्रकारों को विभिन्न मामलों में कानूनी जानकारी देते हुए भविष्य में भी पत्रकारों को कानूनी सहायता देने के लिए आश्वस्त किया।
“नमस्कार साथियों, यदि आप ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब चैनल, वेबसाइट या समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों से जुड़े पत्रकार या आम जन हैं। तो हम चाहते हैं कि आप हमारे लेखों को पढ़कर हमें अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। आपकी प्रतिक्रिया हमें और बेहतर करने की ओर अग्रसर करने में हमारे लिए मददगार और महत्वपूर्ण होंगी। ऐसा हमारा विश्वास है। हम आपकी प्रतिक्रिया को अपने अगले लेखों में अवश्य शामिल करेंगे। आप चाहेंगे तो आपकी प्रतिक्रियाओं को हम आपके नाम से प्रकाशित कर देंगे। यदि आप अपने अभिमत को गोपनीय रखना चाहते हैं तो हम आपके अभिमत या प्रतिक्रिया पर आपका नाम उजागर नही करेंगे।” ~ संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज