वास्तविक मुद्दे
मेहरबानी करके पिस्टल छिनवा कर पैर में गोली मारने की बहादुरी बार बार न करें

दैनिक सुप्रीम न्यूज 7 जनवरी 2023 supreme 07 jan 2023_ का अंक पढ़ने के लिए क्लिक करें।
संपादकीय
संजय भाटी की कलम से
क्या पिस्टल छिनना लापरवाही नही है?
मेहरबानी करके पिस्टल छिनवा कर पैर में गोली मारने की बहादुरी बार बार न करें
चोरी के केस का वारंटी गिरफ्तारी से इतना क्यों डर गया कि वह पुलिस हिरासत से भाग खड़ा हुआ? न्यायालय में उपस्थित न होने के चलते वारंट जारी हो जाना इस तरह का अपराध तो नही था जो किसी को पुलिस हिरासत से भागना पड़ा। चोरी के अपराध में कोई लम्बी चौड़ी सजा भी अभी उसे नही सुनाई गई थी। फिर भी पुलिस हिरासत से क्यों भागा? एक अकेले मुकदमें के कारण कोई इस तरह भाग जाएगा?
कम से कम मुझे तो हजम नही हो रहा। कुछ तो वजह रही होगी? कहीं ना कहीं पुलिसिया रबाब गांठने या फिर कोई दूसरा अनुचित दबाव जरुर रहा होगा। चोरी के अपराध की सजा भी इतनी नही होती की कोई ऐसा व्यक्ति जिसे सही से कानूनी ज्ञान हो वह पुलिस हिरासत से भागने का ऐसा अपराध करेगा। जिसमें पैर में गोली लगने की गारंटी हो।
कौन सा पेशेवर अपराधी इस बात से भलीभांति परिचित नही है कि पुलिस हिरासत से भागने का सीधा मतलब ही पैर में गोली लगना है। पैर में गोली लगने का सीधा मतलब यह है कि दो पूर्णतया फर्जी मुकदमों का बढ़ जाना है। एक तो आर्म्स एक्ट दूसरे 307 आईपीसी और गैंगस्टर एक्ट भी लगाया जाना तय ही समझों।
वारंट में कितने दिन जेल में रह सकता है? या तो उसे इस बात की सही जानकारी पुलिस या अन्य किसी से भी नही मिली। या फिर उसे पुलिस कर्मियों द्वारा मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
आम तौर से पुलिस हिरासत से भागने के लिए भी तो कुछ कारण होना चाहिए? ऐसे ही कोई क्यों भागेगा? अब यदि उसके भागने का कोई प्रयाप्त कारण है तो वो स्वयं पुलिस को सामने लाना चाहिए। हां हिरासत पर भाग जाने के कारण पुलिस की लापरवाही तो साफ साफ दिखाई दे रही है। जिसके लिए छः पुलिस कर्मियों को सस्पेंड भी किया गया। लेकिन हिरासत से भागने वाले व्यक्ति के द्वारा पिस्टल का छिना जाना और फिर पुलिस पर हमलावर होना भी तो पुलिस की लापरवाही से ज्यादा और कुछ भी तो नही है।
एक दरोगा की पिस्टल का छिनना वो भी पूरी टीम की मौजूदगी में क्या ये पुलिस टीम की बहादुरी है? वास्तव में तो यह हिरासत से मुलजिम के भाग जाने से भी बड़ी लापरवाही है। इस में पुलिस की जांबाजी तो बिल्कुल भी नही है। न ही इसमें ऐसी कोई बात है जिसके लिए पिस्टल छिनवाने वाले दरोगा की लापरवाही को उसके साथियों द्वारा पिस्टल छिनने वाले के पैर में गोली मारकर बहादुरी में बदला जा सकता।
यह किसी भी तरह से बहादुरी नही है। कदापि बहादुरी नही है। पुलिस वाले की पिस्टल छिने जाने की घटना में कितनी सच्चाई है? मैं इस पर तो कुछ भी नही कहना चाहता। इस तरह की लापरवाही की गिरफ्तार व्यक्ति एक पुलिस कर्मी की पिस्टल छिन ले। पुलिस के अधिकारियों द्वारा ऐसी लापरवाही के लिए दण्ड देना के बजाए यह प्रचार किया जाएं कि पैर में गोली मारकर बहादुरी की गई है। मेहरबानी करके भविष्य में ऐसी बहादुरी से बचें।
ध्यान रहे न तो हम ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी को बेच रखा है। दूसरे पत्रकारिता भी गिरवी नही रखी है। न ही हम क्लबिया गैंग के सदस्य है। पुलिस अपनी लापरवाही से दण्डित होकर झुंझलाहट निकालने के लिए पिस्टल छिनवाने और पैर में गोली मारने की बहादुरी न करे तो ही अच्छा रहेगा। वरना ये बहादुरी सस्पेंसन तक सीमित रहने के बजाय बर्खास्तगी और सजा तक भी जा सकती है।