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ये असल मुद्दा नही है कि पत्रकार कौन है? असल मुद्दा ये है कि पत्रकारिता क्या है?

हमारा कहना है कि अधिकांश पत्रकारों, संपादकों और मिडिया संस्थानों का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ पैसे वसूलने तक सीमित हो गया है। वर्तमान में अधिकांश पत्रकारों द्वारा अपने अवैध वसूली के उद्देश्य को आगे बढ़ाने और वसूली के धंधे को धार देने के लिए ही तरह-तरह के संगठन, क्लब आदि बनाए जाते हैं। क्योंकि आप देखेंगे कि न तो कोई भी क्लबिया पत्रकार क्लबों की सदस्यता छोड़ने को तैयार है। न ही क्लब के पत्रकारों के अवैध वसूली या दूसरे गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के विडियो वायरल होने पर भी अपने सदस्यों पर किसी तरह की नैतिकता संबंधित कार्यवाही करने को तैयार हैं।

ये सब देख कर एक बात साफ हो गई है कि पत्रकारिता में जितने गंदे लोग भरे हुए हैं शायद है कि इतने राजनीति में भी नही। पत्रकार हो या संपादक या पत्रकारिता में किसी भी तरह से जुड़ा हुआ व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ वसूली करना चाहता है देश की बढ़ती हुई बेरोजगारी का दबाव पत्रकारिता के ही हिस्से में आ गया है।

यहां हम आपको गौतमबुद्धनगर से प्रकाशित “यू. पी. न्यूज एक्सप्रेस” अखबार के फ्रंट पेज की मुख्य खबर जो संपादक श्री प्रमोद यादव द्वारा लिखी गई है, को सांझा कर रहे हैं। खबर में भले ही तथाकथित पत्रकारों का आतंक बताया गया है। तथाकथित पत्रकार शब्द पर हमें एतराज है। लेकिन अपने इस एतराज से पहले हम अपने छोटे भाई प्रमोद यादव को पत्रकारिता और पत्रकारों की सच्चाई सबके सामने उजागर करने के लिए हमारे मिशन को सहयोग करने के लिए धन्यवाद करते हैं।

एक ओर जहां छोटे भाई प्रमोद यादव ने अपनी खबर में तथाकथित पत्रकारों के द्वारा शराब के ठेकों से उगाही करने की बात कही गई। वहीं दूसरी ओर शराब के ठेकों पर धड़ल्ले से चल रही ओवर रेटिंग का उल्लेख भी अपनी खबर में किया है।‌

मतलब साफ है कि छोटे भाई प्रमोद यादव ने अपनी खबर में आबकारी विभाग की मिली भगत से शराब के ठेकों पर धड़ल्ले से चल रही ओवर रेटिंग को भी उजागर किया है। जो सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए काफी है।

अब हम आप को स्पष्ट बता देना चाहते हैं कि वर्तमान समय में किसी तथाकथित, फर्जी या नकली पत्रकार की औकात नही है कि अवैध उगाही की हिम्मत जुटा ले। यदि अवैध वसूली करना इतना आसान होता तो कोई भी पत्रकार किसी भी पत्रकार संगठन या प्रेस क्लबों की सदस्यता नही लेता। वैसे भी गौतमबुद्धनगर के पत्रकारों को यहां के प्रेस क्लबों के पदाधिकारियों और अध्यक्षों से तनिक भी सरोकार नही है। बस अधिकांश पत्रकारों के लिए तो क्लब की सदस्यता अपने परिवार के गुजर बसर के लिए पत्रकारिता के नाम पर चलने वाली अवैध उगाही में सहायक होती है। तो कुछ के दिमाग में क्लब के पदाधिकारी बन कर करोड़ों रुपए की लाइजनिंग के धंधे पर जमीं रहती है।

 

सपना देखने में कोई बुराई नहीं है। जिसके मन में जो आए मर्जी चाहे देखें। वैसे भी दलाली का धंधा बहुत मोटा होने के साथ-साथ शानोशौकत और रुतबे का है। सांसद, विधायक, जिला प्रशासन और पुलिस विभाग के साथ-साथ तीन-तीन प्राधिकरणों से जुड़ा हुआ है।

 

 

पत्रकारिता में पहले से जुड़े लोग जिन्होंने पत्रकारिता को केवल और केवल कमाई का जरिया समझते हुए पत्रकारों और पत्रकारिता को रसातल में पहुंचा दिया।  ऐसे लोग न जाने कहां से वैध और अवैध पत्रकार, असली और नकली पत्रकार, तथाकथित पत्रकार, सोशल मीडिया, अखबार, टीवी चैनलों में पत्रकारिता और पत्रकारों को बांटने में लगे हैं।

आखिर पत्रकार कौन है? पत्रकारिता क्या है?

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