राष्ट्रीय मुद्देविचारक

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पत्रकारों के लिए सस्ते दामों में मकान देने के नाम पर पत्रकारों के सामने टुकड़े फेंक दिए

 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब पत्रकारों के सामने सस्ते दामों में मकान देने के नाम पर नए टुकड़े फेंक दिए हैं।

पत्रकारिता को मुठ्ठी में रखने के लिए पहले से ही सरकारों ने मीडिया संस्थानों के मालिकों और पत्रकारों को तमाम तरह की नीतियों से जकड़ रखा था। कुछेक को कानूनों से तो कुछेक को सुविधाओं से जकड़ रखा था। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब पत्रकारों के सामने सस्ते दामों में मकान देने के नाम पर नए टुकड़े फेंक दिए हैं। इस सब में जन हितैषी पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों की मुश्किलें और बढ़ जाएगी।

 

टुकड़खोर गर्दन झुकाकर पुंछ हिलाते हुए वफादारी साबित करने की होड़ और वफादारी के नशे में गुर्रा-गुर्रा कर जनता को लहूलुहान कर देंगे। कुछेक तो हमारे जैसों के घरों पर बुलडोजरों को लेकर पहुंच जाएंगे। अच्छे से समझ लीजिए बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहे परिवेश में सरकारी सुविधाओं के साथ सम्मान का ये तोहफा अब जनहितैषी पत्रकारिता को जड़ से खत्म कर देगा।

वह दिन दूर नहीं है जब गली मोहल्ले की पत्रकारिता कर रहे पत्रकार पुलिस प्रशासन द्वारा लठिया कर खदेड़ दिए जाएंगे। यदि लठिया कर दौड़ाए जाने से भी नही माने तो जबरन पकड़ पकड़ कर जेलों में ठूंस दिए जाएंगे। इतने भर से पीछा नही छूटेगा। जमानत तक नही होंगी। यदि पत्रकारों के यारे प्यारे सरकार द्वारा खदेड़े गए पत्रकारों की जमानत करवाएंगे तो ऐसे लोगों पर भी सरकार के लठहत और बुलडोजर तक की तमाम योजनाएं उनका पीछा करती दिखाई देंगी। इस सब की कवरेज के लिए मान्यता प्राप्त पत्रकार सरकारी आवास योजनाओं की लालसा में पूरी तन्मयता और आकाओं की वफादारी के साथ कर अपनी सरकारी आवासीय योजना की पात्रता की दावेदारी करेंगे।

अभी तक छोटे मोटे अखबारों‌ व पत्रिकाओं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पत्रकारिता करके धुरंधर बने फिर रहे पत्रकारों की समझ में यह बात नही आ रही है। क्योंकि सभी अपने आप में यह सोचकर चल रहे हैं कि एक दिन वह फलां प्रेस क्लब या फलां पत्रकार संगठन के अध्यक्ष बन जाएंगे।

सभी की सोच एक जैसी बनी हुई है कि “बस एक बार अध्यक्ष या फिर कोई पदाधिकारी बन गए तो लूट खसोट कर माल इकट्ठा करते हुए शासन-प्रशासन के लोगों से गलबहियां करने में कामयाब होंगे।” किसी को भी इस बात का कोई अंदाजा नही है कि क्लबिया गैंग तो गैंग ही रहेंगे। भले ही सरकारें क्यों न बदल जाएं। किसी भी प्रकार का सरकारी माल मिलेगा तो कुछेक गिने चुने ठेकेदारों को …..

पत्रकारिता के नाम पर बने अधिकांश संगठन में चिपके पुच्छलों की सोच भी पदाधिकारी बनकर सैटिंग गैटिंग की होती है। इस लिए सबकी वफादारी सरकार व सरकारी मशीनरी के प्रति बनी रहती है।जिसके चलते उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर के पत्रकारों के संगठनों से जुड़ कर संगठित रूप से सरकार व सरकारी मशीनरी की गुलामी का झंडा बुलंद कर रहे हैं।

करें भी क्यों ना जब एक ओर पत्रकारों को समाज में आमजन के लिए काम करते वक्त दो जून की रोटी तक नसीब नही होती। यदि कुछ मिलता भी है तो केवल अपराध में संलिप्त लोगों द्वारा ही फेंके गए टुकड़े । चोरी छिपे इन्हीं टूकडों के दम पर पत्रकारिता के लिए चलने वाली कलम और स्याही खरीदी जाती रही है।

आज उन्हीं पत्रकारों के सामने सरकार तरह-तरह की योजनाएं ला रही है। लालच इंसानी फितरत है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकार ही लालच क्यों छोड़ दें? वैसे भी यह तो सरकार दे रही है। जनता से क्या मतलब? सरकार का दिया हुआ माल तो एक नंबर का माल ठहरा।

पत्रकारों को बुद्धिजीवी कहा जाता है। हम भी यही सोचकर पत्रकारिता में आए थे। सोचा था कि हम बुद्धिजीवी जमात का हिस्सा होंगे। लोग तमाम बुद्धिजीवियों के साथ हमारा नाम भी लेगें। जब हम लोगों ने पत्रकारिता शुरू की थी तो हमारे सामने देश की आजादी के समय के पत्रकारों के किस्से थे। लेकिन जैसे ही हम ने पत्रकारिता शुरू की तो हमें जानकारी हुई कि पत्रकारिता तो केवल दो नम्बर के माल के बंटवारे की झट्टमझोडा मात्र है।

 

पुराने पत्रकारों के किस्से आज भी मनमस्तिष्क को झंझोर देते हैं। हम भी उम्मीद करते हैं कि फिर पत्रकारिता अपने असल अस्तित्व को पुनः एक बार प्राप्त कर लेगी। शायद पत्रकार लालच छोड़कर सही रास्ता अपनाने लेंगे। इसलिए हम आज भी पत्रकारिता में बने हुए हैं।

हमें गर्व है कि हम देश भर के किसी भी क्लबिया गैंग के सदस्य नही है। किसी भी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार भी हम नही हैं। अब ये कहने की जरूरत बाकी नही है कि हमें सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नही चाहिए या फिर पत्रकारिता की एवज में सस्ते सरकारी मकान नही चाहिए। यहां तक कि हम तो उन सब पत्रकार संगठनों से भी इत्तफाक नही रखते जो वर्तमान में मौजूदा कानूनों और संविधान से भारतीयों को मिली अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करने के बजाए पत्रकारिता व पत्रकारों के नाम पर कुछ ज्यादा पाने की इच्छा रखते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि पत्रकारिता के नाम पर ज्यादा पाने की इच्छा ने ही पत्रकारिता को सरकार की दरबारी पत्रकारिता में बदल दिया है।

 

संजय भाटी व मधु चमारी संपादक सुप्रीम न्यूज 

 

 

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