विचारकसंजय भाटी

जिला स्तरीय संपादकों और पत्रकारों को पत्रकारिता के सुधार के लिए महीने में एक बार तो साथ बैठकर सोचना चाहिए ~ संजय भाटी

ध्यान रहे संपादक भी पत्रकार होता है। इसलिए लेख में जहां कहीं संपादक शब्द का प्रयोग किया गया है वहां पत्रकार भी शामिल हैं। पत्रकारिता के सुधार का दायित्व पत्रकार और संपादक दोनों पर समान रूप होता है ~ संजय भाटी

पत्रकारिता से जुड़े लोगों को कम से कम महीने भर में एक बार तो अपने ग्रह बान में झांक लेना चाहिए और हो सके तो साथ बैठकर कुछ मंथन कर लेना चाहिए ~ संजय भाटी 

 

साथियों नमस्कार

हम आप सभी साथियों से एक अनुरोध करना चाहते हैं कि हम सभी को पत्रकारिता के सुधार और जनहित के मामलों पर चर्चा करते रहना चाहिए। क्योंकि वर्तमान में अधिकांश संपादकों/पत्रकारों की पत्रकारिता केवल और केवल पैसे के पीछे भागते दिखाई दे रही है।

वैसे तो गौतमबुद्धनगर में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दोहरे प्रेस क्लब मौजूद हैं लेकिन फिर भी दोनों क्लबों में पत्रकारिता के घिनौने रुप और व्यवसायिक प्रयोग को रोकने पर कभी कोई चर्चा नही होती। उनके यहां राजकाज के बड़े मुद्दों के चलते ऐसे विषयों के लिए समय नही होता। जिसके कारण हमारा हमेशा गौतमबुद्धनगर के प्रेस क्लबों से वैचारिक मतभेद लगातार चलता रहता है।

इस सब पर हमारा मानना तो यही है कि पत्रकारों के बड़े बड़े संगठनों का उद्देश्य येनकेन प्रकारेन संगठनों में पदाधिकारी बनकर सैटिंग गैटिंग करना मात्र होता है। आज तक पत्रकारों के संगठनों को हम ने कभी पत्रकारों की पत्रकारिता किस दिशा में जा रही है इस पर चर्चा करते नही देखा। बहुमत और बोट की राजनीति पत्रकारों के संगठनों में इस कदर हावी हो गई है कि किसी भी अरेगरे को सिर्फ इसलिए पत्रकार संगठनों का सदस्य बनाया जाता है कि चुनाव जीतने के लिए बहुमत मिलता रहे। सदस्यता के कोई मानक ही नही होते। इन क्लबों का पत्रकारों और पत्रकारिता के मूल मुद्दों से कोई मतलब नही है।

जिले में एक भी संगठन या फिर एक भी मीडिया संस्थान या फिर कोई संपादक या पत्रकार ऐसा नही जो पत्रकारों की पैसे के लिए होने वाली अंधी दौड़ और गर्दमगर्दा पर अंकुश लगाने और पत्रकारिता की मिट्टी पलीद करवाने वाले पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता के बारे में कभी कभार साल दो साल में एकाध घंटे बैठ कर चर्चा करके कुछ सुधारात्मक कदम उठाने की किसी योजना पर बातचीत करें। जिले में जिसके संबंध पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों से ज्यादा सैटिंग गैटिंग के होंगे वह उतना ही बड़ा पत्रकार माना जाता है, यह बात अब एक जग जाहिर सिद्धांत बन चुकी है। 

जिस तरह पत्रकार संगठनों की सदस्यता को लेकर कोई नैतिक, चारित्रिक और व्यवहारिक मानक नही हैं। ठीक उसी तरह अब मीडिया संस्थानों के मालिकों और संपादकों के लिए भी अपने पत्रकारों की भर्ती को लेकर को मानक नही हैं।

किसी का भी ध्यान जनहितैषी पत्रकारिता और पत्रकारों के हितों पर बिल्कुल भी नही है। पत्रकार संगठन हों या फिर मीडिया संस्थान से जुड़े हुए संपादक और मालिक आदि। जनहितैषी पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई संबंध न होने के कारण गौतमबुद्धनगर में आज यह स्थिति हम सब को देखने को मिल रही है कि पत्रकारिता केवल और केवल अवैध वसूली व गैरकानूनी गतिविधियों को संरक्षण प्रदान करने का कारोबार भर बन कर रह गई है।

पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारों में अवैध धंधों को संरक्षण देने और उनसे धन वसूली की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अनेकों पत्रकारों ने अपना उद्देश्य केवल और केवल अवैध वसूली को बना रखा है।

जिसके चलते एक तरफ ईमानदार पत्रकारों और संपादकों की पत्रकारिता किनारे होती चली गई जबकि दूसरी ओर अवैध कारोबार और कारोबारियों को संरक्षण देने वाले पत्रकारों का नंगा नाच बहुत ही बेशर्मी और ढिठाई के साथ हम सभी के सामने बखूबी चल रहा है।

हम देख रहे हैं कि सप्ताह भर में यूपी न्यूज एक्सप्रेस के सम्पादक प्रमोद यादव द्वारा कुछ पत्रकारों के विषय में ऐसी खबरें प्रकाशित की हैं। जिनसे एक बात तो खुलकर सामने आ गई है कि गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर के पत्रकार अपने नंगेपन के रिकार्ड पार कर गए हैं।

ये बात भी गौर करने लायक है कि जिन पत्रकारों के विषय में यूपी न्यूज एक्सप्रेस के संपादक प्रमोद यादव द्वारा खबरें प्रकाशित की गई हैं। उन्होंने भी अपने हाथ पांव मारने में कोई कमी नही छोड़ी। अपनी सफाई देने या फिर अपने निर्दोष होने के प्रमाण पत्रकारों और न्यूज के WhatsApp ग्रुपों में रखने के बजाय ऐसी अनर्गल बातें करके यूपी न्यूज के संपादक का बेहयाई और नंगेपन से विरोध दर्ज करना नंगेपन के साथ अपने आप में पत्रकारिता के लफंगेपन की नई दिशा सबके सामने है। जिसे हम पत्रकारिता की दुर्दशा के तौर पर भी देख सकते हैं।

 हम यह भी कैसे कहें कि जिनके खिलाफ यूपी न्यूज एक्सप्रेस में खबरें प्रकाशित हुई उन्हें सब कुछ सहन कर लेना चाहिए था। जबाब देना चाहिए था। लेकिन अपनी सफाई के तौर पर जो नही दिया गया। पाठकों द्वारा इसका सीधा मतलब यही लगाया गया कि  पत्रकारों पर लगाए गए आरोप सही हैं। इसलिए शांति बनाए रखने में ही भलाई थी। लेकिन उसे नही समझा गया। 

जिन पत्रकारों और न्यूज के ग्रुपों में दोनों पक्षों की ओर से खबरें प्रकाशित कर वायरल की जा रही है। उनमें मौजूद पत्रकारों से किसी भी पक्ष को कोई उम्मीद नही है ? क्या हम सब इन WhatsApp ग्रुपों में मित्रवत नही जुड़े हैं ? युक्रेन और रुस के युद्ध की तरह खबरों की मिसाइल छोड़कर शक्ति प्रदर्शन किया गया है। गजब की प्रतिभा सबके सामने हैं।

इस सब में WhatsApp ग्रुपों में गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद के बाकी पत्रकारों और संपादकों की पत्रकारिता की निष्पक्षता भी गजब की रही। एक संपादक दूसरे साप्ताहिक अखबार के संपादक सहित सात से आठ पत्रकारों के बारे में रोज कुछ नया लिख रहा है। क्या इस पर पत्रकारिता के लम्बे चौड़े कुनबा द्वारा आंखें बंद कर लेना ही महानता है ? या फिर हमाम में सब नंगे हैं। जिसके कारण कोई बोलने लायक ही नही हैं। या फिर सभी की पत्रकारिता सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन दाताओं की खबरों और पुलिस के मीडिया सेल, सूचना विभाग और न्यूज एजेंसी की खबरों तक ही सीमित है। हमारी सभी से नाराज़गी यह है कि पत्रकारिता और पत्रकारों के मामले में मौन धारण करना कौन सी रणनीति है? यह हमारी समझ से परे है।

दो जिलों के एक – दो नही, सात से आठ पत्रकारों की पत्रकारिता पर सप्ताह भर में सवाल खड़े होने का मतलब शायद बाकी पत्रकारों और संपादकों की समझ में नही आ रहा है। इसे समाज अपने नजरिए से कुछ इस तरह देख रहा है कि सब के सब पत्रकार और संपादक इसलिए डरे-सहमें और लाचार दिखाई पड़ रहे हैं क्योंकि सभी को अपने खुद की पत्रकारिता की प्रतिभा के चिट्ठे खुलने का डर सता रहा हो। क्या यही वास्तविकता है? या फिर सभी की नजर दोनों जिलों में चलने वाली गैरकानूनी गतिविधियों और उनसे होने वाली अवैध वसूली की आमदनी पर है ?

सबसे बड़ी बेशर्मी तो यह है कि कुछ पत्रकारों ने अपने WhatsApp ग्रुपों में पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के अलावा अपने जुआ चलाने वाले मित्रों, अवैध रूप से शराब की बिक्री करने वाले मित्रों, भूमाफियाओं, खनन माफियाओं और दूसरे अवैध कारोबारों से जुड़े अपने मित्रों को जोड़ा हुआ है। कुछ संपादकों ने तो अपने ऐसे मित्रों को प्रेस के आई कार्ड तक दे रखें हैं। हमें यह जानकारी भी पत्रकारों द्वारा द्वारा ही मिली है। ऐसे में यूपी न्यूज एक्सप्रेस के सम्पादक प्रमोद यादव द्वारा खबरों में प्रकाशित यह कथन एक दम सही है कि दादा हजूर के संपादक द्वारा हर किसी को आईकार्ड बना दिए हैं।

यहां सवाल सिर्फ दादा हजूर के संपादक तक नही है। दूसरे संपादकों को भी अपने ग्रहबान में झांकते हुए यूपी न्यूज एक्सप्रेस द्वारा हम सबके सामने अपनी खबरों के माध्यम से रखें गए आइने में अपने चेहरे को भी निहार लेना चाहिए। वरना वो दिन दूर नही जब हम में से कोई दूसरे पत्रकार और संपादक खबरों की हेडलाइन बने नजर आएंगे। सवाल ये है कि हम सब के बीच में अपराधी प्रवृत्ति के लोग कैसे स्थापित हो रहे हैं ? क्या ऐसे अपराधियों को WhatsApp ग्रुपों में शामिल करना पेशेवर अपराधियों को माननीय बनने की कवायद नही है ? जो अपराधी प्रवृत्ति के लोग आज पत्रकारों ने WhatsApp ग्रुपों में शामिल कर रखें हैं आने वाले कल यही लोग अखबार मालिक और संपादक बन कर हमारे सामने खड़े हो जाएंगे। क्योंकि इनके अपराध से एकत्रित किया हुआ अथाह पैसा होता है।

हमें उस समय बहुत आघात लगा जब यह मालूम हुआ कि यूपी न्यूज एक्सप्रेस में छपी तस्वीरों में “शिव शंकर अवस्थी संपादक साप्ताहिक दादा हजूर” के दो पत्रकारों के फोटो सहित खबरें प्रकाशित हुई।

   शिव शंकर अवस्थी से सात से आठ साल पहले हमारी मुलाकात अखबार की प्रिंटिंग कराते समय अक्सर हो जाती थी। क्योंकि सुप्रीम न्यूज और दादा हजूर की प्रिंटिंग एक ही स्थान पर होती थी । उनके पत्रकारों से तो हमारा परिचय नही है। पर एक गरीब जिसने तरह-तरह की मेहनत मजदूरी यहां तक कि बेलदारी और दहाड़ी मजदूरी करके अपनी पत्रकारिता और अखबार को जारी रखा।

 

हमें ऐसा लगा कि दादा हजूर के संपादक केवल पत्रकारों के गलत चयन के कारण यूपी न्यूज एक्सप्रेस की खबरों का हिस्सा बन गए हैं। इसलिए हमारे द्वारा दादा हजूर के संपादक से इस विषय पर लगातार वार्ता की गई। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारी वार्ता के सार्थक नतीजे आएंगे। 

यूपी न्यूज एक्सप्रेस में फोटो सहित छापी गई खबरें में कुछ फोटो दूसरे मीडिया संस्थानों से सम्बंधित पत्रकारों के बताए गए हैं। दूसरे मीडिया संस्थानों के जिन पत्रकारों के फोटो सहित यूपी न्यूज में खबरें प्रकाशित की हैं। हमारा उनसे कोई व्यक्तिगत परिचय तो नही रहा लेकिन जो परिचय अब यूपी न्यूज एक्सप्रेस की खबरों के माध्यम से हुआ है। क्या यह निस्संदेह पत्रकारों की अवैध वसूली का विवाद मात्र है? जो अति की सीमा के पार पहुंच गया है। क्या इसके पीछे प्रमोद यादव का पत्रकारिता को लेकर चिंतन और हम सब के लिए संदेश है ? वास्तव में पत्रकारिता और पत्रकारों का चेहरा ऐसा नही होना चाहिए। इस पर हम सबको प्रमोद यादव के साथ मंथन करके सहयोग करते हुए पत्रकारिता की गंदगी को साफ कर देना चाहिए।

इसका दूसरा पहलू ये हो सकता है कि यूपी न्यूज एक्सप्रेस के संपादक ने हम सब के सामने समय रहते एक गंभीर संदेश दे दिया कि आखिरकार हम पत्रकारिता के नाम पर कब तक और कहां तक गिरते रहेंगे। यहां हम यह कहना चाहते हैं कि प्रमोद यादव द्वारा हम सबके सामने अपनी खबरों के माध्यम से पत्रकारों व पत्रकारिता की जो तस्वीर रख दी है। क्या उससे साफ करने का दायित्व हम सब का नही है ? क्या हम ऐसे लोगों से दूरी नही बना सकते ? जिनके कारण पत्रकारिता न केवल कलंकित हो रही है बल्कि कलंक ही पत्रकारिता बनने को बेताब खड़ा हो गया है।

     हम छोटे भाई प्रमोद यादव से इस बात को लेकर सहमत हैं कि पत्रकारिता और पत्रकारों पर कुछ तो अंकुश होना चाहिए। पत्रकारिता में कानून व्यवस्था के साथ-साथ नैतिकता, सामाजिकता और जनहितों का समावेश न केवल होना चाहिए बल्कि यह स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए। पत्रकारिता किसी अपराध और विभाचार का प्राय नही बने। हमें इसके लिए निरंतर चिंतन करते रहना चाहिए।  जिससे पत्रकार और पत्रकारिता का चेहरा समाज के सामने इतना घिनौना और गिरा पड़ा भी नही हो। जो सिर्फ और सिर्फ अवैध वसूली तक सीमित हो जाएं। इस तरह के मामलों से हम सभी पत्रकारों की साख पर सवाल खड़े होते हैं। यहां तक की पत्रकारिता और पत्रकार शब्द की तौहीन होती है। इसलिए हम छोटे भाई प्रमोद यादव से इस सब में सिर्फ इतना ही कहना चाहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी से अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ है तो उस अवैध कारोबार का भी खुलासा साथ के साथ करते रहें। जिसे कम से कम समाज में अवैध और गैरकानूनी धंधों पर भी अंकुश लगाया जा सके। दूसरे ओर ऐसा करने से सरकारी मशीनरी का वास्तविक चेहरा सामने आता रहें। क्योंकि अवैध कारोबार भले ही वह जुआ, सट्टा, सुल्फा, गांजा, अवैध शराब की बिक्री, सरकारी ठेकों पर ओवर रेटिंग और ब्लैक में देर रात्रि की जाने वाली देशी, अंग्रेजी और बियर की बिक्री ही क्यों न हो। 

असली गुनहगार तो वे माफिया और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त कारोबारी और जिम्मेदार सरकारी मशीनरी है। जो अपनी गैरकानूनी गतिविधियों को बेनकाब होने से बचने के लिए पत्रकारों के सामने कुछ टुकड़े फेंक देते हैं। इसमें कोई संदेह नही की माफियाओं और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों व भ्रष्टाचार में अकंठ डूबी सरकारी मशीनरी ने बहुत से पत्रकारों को ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया कि अब उनके सुधार की सम्भावना न के बराबर है।

सच बात तो यह है कि अनेकों बड़े कारोबारियों ने अपनी कारगुज़ारियों की सुरक्षा के लिए अपने खुद के अखबार निकालन कर कुछ पत्रकारों को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें देते हुए उन्हें दूसरों पर हल्ला गुल्ला करने के लिए भर्ती कर लिया है।

यहां सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पहलू तो यह है कि पत्रकारों को अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों को बेनकाब करना चाहिए। उनके संचालकों को बेनकाब करते हुए जिम्मेदार अधिकारियों से कारवाही कराने के लिए पत्रकारिता करनी चाहिए। यदि अधिकारियों द्वारा कारवाही नही की जाती है तो संरक्षण देने वाले जिम्मेदार अधिकारियों को बेनकाब करना चाहिए। 

पत्रकारिता और पत्रकारों को सही दिशा में लाने के लिए हमें मिल बैठकर कुछ तो सोचना चाहिए? क्या इसके लिए दूसरे विकल्पिक रास्ते नही हो सकते ?

चंद भ्रष्ट पत्रकारों को संपादकों द्वारा बहार के रास्ते भी दिखाया जा सकता है। पत्रकारों की शिकायतों और सुधार के मामलों में सम्पादकों द्वारा बहुत हद तक अंकुश लगाए जा सकते हैं। हमें इस पर एक बार जरूर सोचना चाहिए।

अंत में सभी पक्षों से हमारा व्यक्तिगत आग्रह है कि सभी इस स्थिति को यहीं पर विराम लगाते हुए। एक बार उचित माध्यम से बातचीत अवश्य करें। हालात कहीं ऐसा न हो जाए कि जो पत्रकार और संपादक अभी तक तमाशबीन बने हुए हैं। आने वाले दिनों उन्हें भी प्रमोद यादव बनाम अन्य में शामिल होना पड़ेगा। वो दिन दूर नही होगा जब पत्रकारों को आए दिन अखबारों के फ्रंट पेजों पर अपने खुद के व साथियों के चेहरे देखने पड़ेंगे। वक्त सुधर जाने की मांग कर रहा है। क्योंकि पत्रकारिता अब केवल अखबारों और टीवी चैनलों तक सीमित नही है। वर्तमान में अनेकों मामले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों जैसे ट्विटर से पैदा होते हैं। जहां मालिक, संपादक और पत्रकार कोई नया और अज्ञात चेहरा हो सकता है। इसलिए हम सबको इसे स्थिति को जल्द से जल्द समझ लेना चाहिए।

छोटे भाई प्रमोद यादव संपादक यूपी न्यूज एक्सप्रेस और दूसरे छोटे दादा भाई शिव शंकर अवस्थी संपादक दादा हजूर से विशेष रूप से कहना चाहते हैं कि इस विवाद को फिलहाल यहीं रोक दें। इसे कोई भी ये भी ना समझ ले कि हम प्रमोद यादव के साथ नही हैं। ना यह समझें कि अन्य पक्षों से हमारी हमदर्दी नही है। आप में से अधिकांश चित्र परिचित हैं कि हम पत्रकारिता के सुधार के पक्षधर हैं । जिसके लिए कहीं तक भी जा सकते हैं लेकिन यह लेख इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले सभी पत्रकार बंधुओ के सम्मान को देखते हुए आपके सामने अपने विचार रखने के लिए जरूरी समझते हुए। हम ने बिलकुल स्वतंत्रत और स्वभाविक रुप में अपने विचार आपके सामने बराबर के भाई-बहन और साथी समझते हुए व्यक्त कर दिए हैं। संभवतया इसमें कुछ गलतियां भी हो सकती हैं। लिहाजा बैठ कर विषय की गंभीरता को देखते हुए चर्चा की जाए।

पत्रकारिता जगत के अन्य सभी छोटे बड़े भाईयों-बहनों और साथियों हम यह कहना चाहते हैं कि यह एक गंभीर मामला है इस पर हम सभी को सोच विचार करना चाहिए। ऐसे में हम लोगों को मौन धारण नही करना चाहिए। समय रहते इस तरह की समस्याओं का इलाज किया जाना चाहिए। हमें पत्रकारिता के रास्ते में खड़ी बड़ी चुनौती से निपटने के लिए कुछ बातों को नजरअंदाज भी करना होगा।

हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करना चाहते हैं। सभी से प्रबुद्ध जनों से हमारा आग्रह है कि अपने अपने विचार रखें। अन्यथा गौतमबुद्धनगर में पत्रकारिता की स्थिति निरंतर खराब होती चली जाएगी। आप में से जो साथी गण वास्तव में पत्रकारिता की गंदगी के स्तर में कुछ हद तक सुधार चाहते हो तो कम से कम इस काम के लिए हर महीने एक मीटिंग का आयोजन अवश्य करें। यह हमारा सुझाव है। यदि आप में से कोई ऐसे कदम उठाने की ओर अग्रसर होना चाहते हैं तो हमारे WhatsApp नंबर 7835991332 व कॉलिंग नंबर 9811291332 पर संपर्क करें। हम भी बहुत से पत्रकार साथियों से इस विषय पर लगातार वार्ता कर रहे हैं। 

इस मामले से लगे हाथों एक बात और ध्यान से समझ लीजिए। आए दिन पत्रकारिता के नाम पर अपने आप को पत्रकार साबित करने के लिए आम गरीब असहाय जनों के विरुद्ध बिना सोचे समझे अनर्गल खबरें प्रकाशित करने वाले पत्रकारों के विरुद्ध खबरें प्रकाशित होने से आरोप – प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा। सोचकर देखिए उन पर क्या गुजरती होगी जिनके खिलाफ हम सभी आए दिन पुलिस की विज्ञप्तियों के आधार पर ख़बरें प्रकाशित करते हैं। जो बाद में न्यायालय से निर्दोष साबित होते हैं।

कभी सोच कर देखिए जिन अखबारों और दूसरे मीडिया संस्थानों में दूसरों का जनाजा आए दिन निकालते हो जब उनमें अपने फोटो सहित जनाजा निकलता है तो कैसा महसूस होता है ?

 

आपका संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज 9811291332 सेवा सदन देवला, सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा, गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश

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