भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार में अकंठ डूबी सरकारी मशीनरी के चलते वर्तमान में अवैध कारोबारियों को संरक्षण और दलाली ही पत्रकारिता बन गई

 

 

कानून व्यवस्था पर भ्रष्टाचारियों का कब्जा हो तो पत्रकारिता भी धीरे धीरे दलाली और अवैध वसूली में डूब ही जाती है। जब सरकारी मशीनरी, पत्रकारों और अवैध कारोबारियों का गठबंधन हो जाता है तो बेड़ा गर्क होना तय है। पत्रकारिता केवल गैरकानूनी गतिविधियों के खुलासे करने तक सीमित है, कार्यवाही करने की जिम्मेदारी सरकारी मशीनरी पर होती है। किसी भी आम नागरिक की सूचना पर पुलिस – प्रशासन यानी सरकारी मशीनरी को गैरकानूनी गतिविधियों और धंधों पर कार्रवाई करनी चाहिए। यदि सरकारी मशीनरी गैरकानूनी गतिविधियों की सूचना मिलने पर कार्रवाई करे तो पत्रकार तो क्या, किसी के द्वारा भी दलाली और संरक्षण देने का सवाल ही नही उठेगा।

इसमें कोई संदेह नही की पत्रकारिता एक ऐसा धंधा बन गया है जिसमें कोई भी चरित्र हीन और भ्रष्ट व्यक्ति चंद दिनों में ही करोड़ पति बन जाता है। जो जितना चरित्र हीन और भ्रष्ट वह उतना ही अमीर पत्रकार बन जाता है। इसका बड़ा कारण है कि वर्तमान में सरकारी मशीनरी अकंठ भ्रष्टाचार और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त है। जिसके कारण ईमानदार छवि के पत्रकारों को पत्रकारिता करने के लिए कानून का संरक्षण नही मिलता। ये बात बिल्कुल अलग है कि अवैध तरीके से धन कमाने वाले लोगों की सामाजिक स्थिति अच्छी नही होती भले ही वे किसी भी व्यवसाय से जुड़े हुए क्यों न हों।

आज से 30 साल पहले जब हम पत्रकारिता को जनसेवा से जुड़ा पवित्रता और ईमानदारी का काम समझ कर पत्रकारिता की ओर आकर्षित हो रहे थे। तभी से पहला कदम रखते ही हम भ्रष्टाचार में लिप्त पत्रकारों के प्रति बगावत करने लगे थे। क्योंकि जिन पत्रकारों को हम आदर्श समझकर पत्रकारिता में कदम रख रहे थे सबसे पहले हम उन्हीं पत्रकारों के चेहरे पर पुती हुई कालिख रुबरु हुए थे।

जिसके चलते हम उस जमाने के बड़े मीडिया संस्थानों जिनमें हम खुद पत्रकारिता करने गए थे। हम उन्हीं मीडिया संस्थानों और उनके पत्रकारों के विरोधी हो गए। उस समय हमने जो खामियां और गंदगी का ढेर मीडिया संस्थानों और मीडिया कर्मियों में देखा उसी को जनता जनार्दन के सामने रखने के लिए अपना खुद का अखबार निकालने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया। अपने इस काम को हम ने कानून के भरोसे आगे बढ़ाने के लिए कदम रख ही रहे थे कि एक और भ्रम कांच की तरह टूट गया।

यह भ्रम कानून पर भरोसा करने का था। जिसका सीधा ज़बाब यह है कि कानून व्यवस्था सरकार व सरकारी मशीनरी पर निर्भर करती है। जब सरकार और सरकारी मशीनरी ईमानदार नही होगी तो कानून व्यवस्था सही हो ही नही सकती। पिछले 30 सालों में हम कानून व्यवस्था के निरंतर गिरते स्तर को देखते आ रहे हैं।

दूसरे भ्रम अपने समाज और जनता जनार्दन को लेकर था। जिसे टूटने में सैकेंड भी नही लगते। आजकल तो खुद लूटा पीटा व्यक्ति मुआवजा राशि या फिर दूसरे प्रलोभनों से अपनी बात बदल देता है। ये सब ज्ञान हो जाने पर भी हम पत्रकारिता को अधिकाधिक जनहितैषी बनाने के लिए जुट गए।

खुद का एक ऐसा अखबार निकालना जो उन गंदगियों से दूर हो जिनका हम विरोध करना चाहते थे। सही बात तो यह है कि यह एक असंभव काम था। फिर भी हम ने इसे करने का प्रयास किया। जो आज तक जारी है। लेकिन हम जिस काम के लिए पत्रकारिता में आए थे। आज हमारा खुद से यही सवाल है कि क्या हम पत्रकारिता की गंदगी को निकालने के कार्य में सफल हुए ?

इस सवाल पर गहनता से विचार करने पर हमारे सामने एक नया और अहम सवाल खड़ा हो जाता है। कि क्या हम खुद को उस गंदगी से बचा पाए जिसके विरोध के लिए हम ने पत्रकारिता की अपनी पारी की शुरुआत की थी। जब हम खुद से सवाल करते हैं तो पाते हैं कि हम न तो अपनी पवित्रता को बचा पाए और न ही अपने आप को आर्थिक रूप से बर्बाद होने से बचा पाए।

पत्रकारिता में फैली गंदगी को साफ करना तो मुमकिन ही नही है। क्यों कि पत्रकारिता में किसी भी गैरकानूनी और असंवैधानिक कार्य के विरोध करने मात्र से आपका जीवन नर्क बना दिया जाता है। क्योंकि सरकारी मशीनरी और अधिकांश पत्रकार अवैध धंधों को संरक्षण देकर कमाई करने में लगे हुए हैं।

वर्तमान में तो हालात ऐसे हैं कि यदि आप अपनी खबरों में किसी अवैध धंधे का खुलासा करते हो तो समझ लीजिए कि आप पर पुलिस या संबंधित विभाग के जिम्मेदार कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक के साथ-साथ ढेरों पत्रकार इस तरह टूट पड़ते हैं जैसे आपने उनमें से किसी की नई नवेली दुल्हन के कपड़े नोच लिए हों 

पत्रकारिता की गंदगी से खुद को बचाएं रखने के लिए आपको आंखों पर पट्टी बांध कर रखनी होगी। यदि आप अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं तो आप पत्रकारिता में फैली गंदगी को साफ कैसे कर सकते हैं?

 

पत्रकारिता से जुड़ी एक अहम जानकारी भी सभी को होनी चाहिए कि पत्रकारिता में आर्थिक लाभ सिर्फ तब होता है। जब पत्रकारों द्वारा अवैध धंधों के संचालकों को संरक्षण दिया जाता है। वो भी तब जब पत्रकारों द्वारा अवैध धंधे के संचालकों के साथ खड़े होकर उन्हें हर कानूनी और जन सामान्य के हस्तक्षेप से सुरक्षित किया जाता है। 

अब यदि पत्रकारों के आर्थिक लाभ या आमदनी की बात करें तो यह सिर्फ तब होती है। जब पत्रकारों के द्वारा आंखें बंद करके किसी को वरिष्ठ समाजसेवी, नेता या फिर किसी दूसरे तरीके से उनके तारीफों के पुलिंदे छापें जाते हैं। ये तारीफों के पुलिंदे सरकार, नेता या किसी विभाग के अधिकारियों के हो सकते हैं। इसके बदले में विज्ञापन और दलाली का मौका दोनों पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को उनके अधिकार बता कर दिए जाते हैं।

कम शब्दों में कहें तो हम यह कह व समझ सकते हैं कि पत्रकारिता में गलत का विरोध करने या समाज और दूसरों को बर्बाद होने से बचाने का सीधा मतलब है कि अपने आप को बर्बाद करना और जोखिम में डालना है। क्योंकि सरकारी मशीनरी अकंठ भ्रष्टाचार में गोते लगाते हुए गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हो चुकी है।

 

 

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