भ्रष्टाचार

वरुण खरे जैसे अधिकारियों से आग्रह क्लबिया गैंग के चिट्ठे खोलने में रोड़ा न अटकाएं

अधिकारियों की समझ में नही आता क्लबिया गैंग के चक्कर में खुद फंस जाते हैं हम बार बार समझते हैं फिर भी नही मानते ~ संजय भाटी

आखिर कार पत्रकारों की तनख्वाह कितनी होती है?

सभी जानते हैं कि अधिकांश पत्रकारों को तनख्वाह के नाम पर फूटी कौड़ी भी नही मिलती। कुछ संस्थानों में 8-10 से 20-25 हजार तक इससे ज्यादा पाने वाले चंद पत्रकार ही होते हैं। लेकिन हमारे जिले में अधिकांश पत्रकारों के पास लग्जरी कार और फ्लैट मौजूद हैं।

रबाब इतना की एक विधायक या सांसद भी इनके सामने नतमस्तक हो जाता है। आखिर कार इनके पास ऐसा कौन सा जादू है। कोई जादुई छड़ी है या फिर अलादीन का चिराग इन्हीं के कब्जे में है।

भ्रष्टाचारियों के साथ साझेदारी का महामंत्र 

क्लबिया गैंग का जादूगरी का असली राज भ्रष्टाचारियों, भूमाफियाओं, बिल्डरों और आर्थिक अपराधियों को संरक्षण प्रदान करके उन्हें बड़ा नेता और समाजसेवी घोषित कर भ्रष्टाचार में लिप्त प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों से लाइजनिंग करके उनके पक्ष में लामबंद हो कर हवा बनाते हैं। क्लबिया गैंग के पत्रकार आम आदमी को तो छोटे-मोटे मामलों में ही जेल दर्शन करवा देते हैं।

जो भी हो हम तो सूचनाएं लेकर रहेंगे हमारे लिए पैसा अहमियत नही रखता 

आप देखेंगे कि क्लबिया गैंग के बारे में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत भी सूचना तक नही दी जाती। अधिकारियों द्वारा इन्हें पूरी तरह से प्रोटेक्शन दिया जाता है। सोसायटी रजिस्ट्रार वरुण खरे को ही देख लीजिए। इनके संगठनों के बारे में सूचना देने को तैयार ही नही है। जबकि कोई भी रजिस्टर्ड संस्था, सोसायटी, संगठन जो सरकार से एक रुपया भी ले रहा हो वह सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में आता है। जबकि हम तो रजिस्टर्ड संगठन के सदस्यों, पदाधिकारियों के नाम पते, कार्यकारिणी सदस्यों के नाम पते व संस्था के संविधान और ज्ञापन आदि के संबंध में सूचना मांग रहे हैं। जो सब आरटीआई के तहत देनी होंगी। यदि नही तो हमें केवल उस नियम को बता दें जिसके तहत सूचना देर नही हैं।

 

 

पूरे जिले की कानून व्यवस्था को मुट्ठी में रखने वाला कलबिया गैंग खुद तरह तरह के अपराधों और गैर कनूनी गतिविधियों में लिप्त है। यह सभी गैर कानूनी कार्य पत्रकारिता की आड़ में चलते हैं। प्रेस क्लब के नाम पर गौतम बुध नगर में एक नहीं दो दो प्रेस क्लब बनाए हुए हैं आंतरिक रुप से दोनों प्रेस क्लब कुछ क्लबिया पत्रकारों के मुट्ठी में है।

एक तो यह पत्रकार बड़े बड़े अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से जुड़े हुए हैं। दूसरे यह हमेशा सत्तारूढ़ दल के नेताओं से सांठगांठ करके रखते हैं। पुलिस प्रशासन के साथ भी इनका अच्छा खासा टाईअप रहता है।

हम एक छोटी सी बात जिले में देश की जनता को समझाना चाहते हैं। क्लबिया गैंग के सदस्य कभी भी जिले के आम आदमी, किसान, मजदूर या फिर किसी भी गरीब के साथ खड़े नहीं होते। क्लबिया गैंग हमेशा अमीरों के साथ मिलकर जनहितों को कुचलने के कुचक्र में शामिल रहता है।

 

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