विचारकसमाज सेवा
जाति संगठन, दलाली और सस्ती कमाई~सतेंद्र यादव
"सतेंद्र यादव जी, ने इस लेख के माध्यम से जातिवादी संगठनों के नाम पर अपनी जाति के आमजन को गुमराह कर अपनी खुद की जाति के आमजन में जातिवादी मानसिकता पैदा करके उन्हें जातिवादी राजनीति की आग में झोंक कर निजी लाभ कमाने वालों की पोल खोल कर रख दी है" ~ संजय भाटी
जाति संगठन, दलाली और सस्ती कमाई
पहले जाति के नाम पर संगठन बनाना उसके बाद गरीबों की सेवा करने का बहाना करके अचानक अमीर हो जाना
यह जातिय संगठनों में कैसे संभव हो रहा है। देश में जितनी जातियां हैं। उतने ही लगभग संगठन जातियों के नाम पर संगठन बनाकर लोग अपनी-अपनी जाति का अस्तित्व व सम्मान बेचकर अपने आपको स्थापित करने में महारत हासिल कर रहे हैं। जातिय संगठनों के मुखिया, हां जरा आप सोचिए कि गरीबों की सेवा के नाम पर संगठन बनाकर अचानक संगठन के मुखिया अमीर कैसे हो जाते हैं?
यह वैसे ही संभव हो रहा है जैसे पाखंडी बाबा भगवान के नाम पर भक्तों को ठगते हैं। पाखंडी बाबा खुद अपने फॉर्च्यूनर से चलते हैं, थार से चलते हैं, स्कॉर्पियो से चलते हैं लेकिन भक्त वही साइकिल से ही चलते रह जाते हैं। वही हाल जातीय संगठनों का हैं। जातीय संगठनों के मुखिया स्कॉर्पियो से, थार से चलते हैं। बंगले में रहते हैं। लेकिन उस जाति के लोग कल भी गरीब थे, किसान थे, मजदूर थे, शोषित थे, लाचार थे, पीड़ित थे, और आज भी गरीब हैं, शोषित हैं, मजदूर हैं, लाचार हैं, पीड़ित हैं l
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सत्येंद्र यादव प्रदेश उत्तर प्रदेश एवं सोशल मीडिया प्रभारी भारतीय जन सेवा मिशन
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