राष्ट्रीयविचारक

देश की जनता कानूनों को छोड़कर अपने इष्ट देवों और भ्रष्टाचार के भरोसे

 

संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज

 

दुनिया की तो मुझे जानकारी नही है, पर मैं भारत के लोगों को बहुत बारीकी से देखता हूं।‌ यहां जो देखने को मिलता है। उसे देख कर न केवल ऐसा लगता है बल्कि वास्तविकता भी यही है कि शिक्षा के अभाव में भारत भर में अधिकांश लोग खुद के भरोसे रहने के बजाय खुदा के भरोसे रहते हैं।

जी हां आप मेरे कहने का मतलब समझ रहे होंगे हमारे देश में लोग धर्म के भरोसे रहते हैं। ईश्वर के भरोसे रहते हैं। भगवान के भरोसे रहते हैं। राम के भरोसे रहते हैं। जीसस के भरोसे रहते हैं। भारतीयों के मानने का कोई ठोड ठिकाना नही है। पता नही कितने देवी देवताओं को मानते हैं? उनके ही भरोसे रहते हैं?

आज भी हम भारतीय या तो पढ़ते ही नही हैं यदि पढ़ते हैं तो नियमित रूप से अपने-अपने धर्म ग्रंथों को ही पढ़ते रहते हैं। किसी ग्रन्थ को एक दो बार नही जीवन भर पढ़ते रहते हैं। बार-बार उसके पाठ के आयोजन करते हैं। धार्मिक ग्रंथों का कंठस्थ याद होना ही हमारी पहचान और प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं। ये सब हमारी परम्परागत और आस्था है। हम इसमें कोई संबोधन नही करेंगे।

जो कुछ भी प्रत्यक्ष रूप में मौजूद है हम उसे मानने और समझने को तैयार ही नही हैं। बीमारियों में दवाईयां खाते जरूर हैं लेकिन बीमारियों के सही होने का कारण डॉक्टर, दवाईयों और अस्पताल को मानने के बजाय अपने ईश्वर को ही मानते हैं। क्योंकि यदि मरीज सही नही हुआ तो डॉक्टर भी तो ईश्वर की इच्छा बता कर ही तो अपनी और अस्पताल की जिम्मेदारी से मुक्ति प्राप्त करेगा।

हम अधिकांश लोगों को भ्रष्टाचार और अन्याय का शिकार होते देखते हैं। आखिर क्यों? इसके कई कारण हैं। ईश्वर के भरोसे रहने वाले लोगों को ईश्वर से ज्यादा भरोसा यदि किसी चीज पर है तो वह केवल और केवल रिश्वत पर ही है। हमारा उद्देश्य आपको हंसाने का बिल्कुल भी नही है। सच्चाई बता रहे हैं। हमें अपने बाप से ज्यादा भरोसा रिश्वतखोरों और अपने इष्ट देवों से ज्यादा भरोसा रिश्वत और भ्रष्टाचार पर है।

कानून व्यवस्था और कानूनों की कोई वैल्यू आम भारतीयों के दिमाग तो है ही नही। थाने-चौकियों और तहसील आदि तो वास्तव में भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं। लेकिन गजब तो तब हो जाता है। जब वकालत के व्यवसाई भी अदालतों के फैसलों में भ्रष्टाचार होने की बात करते सुने व देखे जाते हैं।

यह शर्मनाक और चिंता का विषय है इसकी वास्तविकता कुछ इस तरह है कि वकालत के व्यवसाय से जुड़े लोगों को ठीक-ठाक फीस नही दी जाती तो पैसे निकालने का यह एक अचूक नुस्खा है। लेकिन वे ऐसा करने में इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्योंकि कहीं न कहीं बीमारी न्याय के मंदिरों में भी लग गई है। अछूता तो कोई नही है। सारा दोष वकीलों का नही है। राजस्व न्यायालय और पुलिस के कार्यपालक मजिस्ट्रेट न्यायालयों ने आम जन की खाल उतारने में कोई कोर कसर नही छोड़ी है। जिस ने जन मानस के दिमाग में न्यायालय शब्द के अर्थ ही बदल दिए हैं। इसी से न्यायालय और न्याय व्यवस्था की छवि बिगड़ गई है।

मामला हमारे भरोसे का भी है हमें कानून व्यवस्था और कानूनों कर भरोसा नही है। क्योंकि रिश्वत और भ्रष्टाचार पर हमारे अटूट विश्वास के चलते हमें सब कुछ मुट्ठी में लगता है। हमारा विश्वास कानून व्यवस्था पर बिल्कुल भी नही है। इसकी वास्तविकता यह है कि हम अपने देश के कानूनों और कानून व्यवस्था को जानते और समझते ही नही हैं। कानूनों और व्यवस्था को समझने की हम कभी जरुरत ही नही समझते हैं। हम इसकी वजह बताएंगे तो आप नाराज़ हो जाएंगे क्योंकि हम इसमें आपकी गलती बताएंगे।

चलो आगे बढ़ते हैं। आप हमारे पाठक हैं आप से विवाद करना हमारा मकसद नही है। मुद्दे पर आते हैं। हमारी मानसिकता, हमारी धारणा, हमारी मान्यता, हमारी आस्था ईश्वर से भी ज्यादा रिश्वत और भ्रष्टाचार में है। ईमानदारी से ये बात तो आप भी मान ही लो तो हम आपको आगे ले चलें।

रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामले में एक बड़ी समस्या ये है कि रिश्वत के पैसे जमा करने के लिए किसी भी अधिकारी के बड़े से बड़े कार्यालय, थाने-चौकियों या कोर्ट-कचहरियों में किसी तरह के कैश काउंटर और कैशियर की व्यवस्था नही होती। न कोई रसीद बुक न कोई गुप्त दान जैसी दान पेटी की व्यवस्था सब कुछ अंधेरे में ही चलता है।

हमें अंधेरा पसंद है। हम भारतवासी गोपनीयता को ही मर्यादा समझते हैं। इस लिए हम कभी भी सरकार से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के लेन देन को हैसियत प्रमाण पत्र के हिसाब से न्युनतम और अधिकतम सरकारी रेट निर्धारित कर जीएसटी लागू करने की मांग नही करते। शराब और भांग आदि की बिक्री पर लठ्ठम लठ्ठा करने वाली सरकारें भ्रष्टाचार को भी नियमित कर दें तो यह भी सुधार और कानून की श्रेणी में ही आ जाएगा।

हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रत्येक सरकारी विभाग में रिश्वत के रेट निर्धारित किए जाएं। इसके लिए कैशियर और कैश काउंटर हों। ऐसा करने में कोई शर्म आ रही है या अभी इतना हाई-टेक नही होना चाहते तो दूसरे विकल्प खोजने चाहिए। अच्छा होगा कि सरकारी विभागों में वर्तमान में भी बहुत से मंदिर आदि बने हुए हैं। उनके अगर- बगल में ही रिश्वत देव और भ्रष्टाचार देश की मुर्तियां स्थापित कर दान पेटियां रख व्यवस्था को ईमानदारी से आगे बढ़ाने का प्रयास हो ताकि अगली पीढ़ियां आधुनिक युग के देवी देवता को अपने जीवन का हिस्सा बना सकें।

वैसे तो सरकार रिश्वत के रेट निर्धारित करने से लेकर भ्रष्टाचार को नियमित करने के लिए इस पर राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्राधिकरण या आयोग गठित करें तो अधिक राजस्व की प्राप्ति होगी। देश व किसी भी प्रदेश की सरकार को राजस्व एकत्रित करने के लिए शराब और भांग आदि के ठेके खोलने की जरूरत नही होगी।

कानूनी फैसलों के लिए पक्ष-विपक्ष से बोली लगवा कर फैसले देने का प्रावधान लागू किया जा सकता है। जमीन जायदाद के मामलों से लेकर अन्य बहुत से मामलों में तो यह प्रक्रिया बहुत कारगर साबित होगी।

इसमें समस्या कुछ भी नही है। हम भारतीय कुछ ही दिनों में इसे भी अपनी प्राचीन परम्परा और अपने धार्मिक ग्रन्थों में तलाश लेंगे। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि दुनिया का कोई विषय हमारे ग्रन्थों में वर्णित ना हो। वैसे भी हम तो विश्व गुरु ठहरे।

किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे इस लिए हम स्पष्ट कर रहे हैं कि हम देश के कानूनों में आस्था रखते हैं। माननीय हाई कोर्ट और माननीय सुप्रीम कोर्ट तक रास्ते जानते हैं। वैसे भी अब तो वहां भी हिन्दी भाषा को मान्यता मिल गई है। समझ लिजिए हमारे लिए कोई समस्या नही है। इसलिए अपनी भावनाओं को आहत होने से बचाएं रखना। वैसे हमारा उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है किसी की भावनाओं को आहत करना नही। जिनकी भावनाएं बहुत जल्दी आहत होने को आतुर रहती है वे अपनी भावनाओं को थोड़ा मजबूत कर लें ज्ञान ध्यान की बातों से भावनाओं को आहत होने से रोकने की कोशिश करें।

आप वर्ष भर तरह-तरह के धार्मिक आयोजन कर ना जाने कितने धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने और उनके पाठ करने की सलाह लोगों को देते हैं। हम कहीं भी तुम्हें सीधे तौर पर कुछ भी नही कहते लेकिन हम देश के संविधान, कानूनों और व्यवस्था की जानकारी देने और उन्हें पढ़ने व जानने के लिए लोगों को प्रेरित करने का प्रयास करते हैं।

संजय भाटी संपादक सुप्रीम न्यूज

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जल्द ही मैं आ रही हूं। धुआंधार लिखूंगी पूरी तैयारी के साथ, मुझे मालूम है, आप मेरी पारी का इंतजार कर रहे हैं। मैं थानों-चौकियों में घूम कर पत्रकारिता में नही आई। मैंने न्यायालयों के चक्कर काटे हैं। मैंने अच्छी तरह समझा है कि देश में महिलाओं और एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग ने लोगों के जीवन को तबाह कर रखा है।

मधु चमारी दैनिक संपादक सुप्रीम न्यूज (गौतमपुरी दादरी वाली)

मैं एक औरत होने के साथ-साथ जात की चमारी हूं। मैं अपने लेखों में अपनी आत्मा के जिंदा होने के सबूत दूंगी। पत्रकारिता और पत्रकार के जिंदा होने के सबूत दूंगी। भारतीय कानूनों के चलते जो एक मर्द नही लिख सकता, एससी-एसटी एक्ट के कारण दूसरी जाति के लोग जो नही लिख सकते वो सब लिखकर मैं भारत की सच्ची बेटी होने का सबूत दूंगी।

आप समझ तो गए होंगे। “मैं एससी-एसटी एक्ट और महिला से संबंधित कानूनों के दुरुपयोग पर बोलूंगी।”

~ मधु चमारी संपादक दैनिक सुप्रीम न्यूज

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