गौतमबुद्धनगरपुलिस की कार्य प्रणाली

पुलिस के गुण गाओ वरना फर्जी मुकदमें भी दर्ज होंगे और जेल भी जाओगे

ये सवाल हम गणतंत्रता दिवस पर विशेष रूप से इस लिए उठा रहे हैं, क्या गणतंत्रता दिवस और स्वतंत्रता दिवस मात्र एक औपचारिकता है?

गौतमबुद्धनगर। पिछले महीने भर से गौतम बुध नगर पुलिस द्वारा गांजा तस्करों की धरपकड़ जारी है जिसमें 4 दर्जन से अधिक गांजा तस्कर गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं। गांजा तस्करों की गिरफ्तारी के सटीक आंकड़े देना तो संभव नही है क्योंकि जिले की जांबाज पुलिस कभी भी किसी भी मामले में आरटीआई के माध्यम से कोई भी सूचना देने से इंकार कर देती है। वैसे तो पुलिस आए दिन प्रेस कांफ्रेंस और विज्ञप्तियां जारी कर सभी ऐसे कानूनों की धज्जियां उड़ती है जिनका हवाला सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना को देने इंकार करते समय करती है।

 

वैसे यह तो साफ है कि गांजा तस्करों पर कार्रवाई गौतम बुध नगर की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह की तैनाती के बाद तेजी पकड़ती नजर आ रही है।  लेकिन अभी भी इसमें एक बड़ा पेंच यह है कि सभी कार्रवाही पुलिस द्वारा स्वयं की गई हैं।

 

इसमें ऐसा ना के बराबर है कि किसी समाजसेवी पत्रकार या यूं कहें कि आम नागरिक की शिकायत पर किसी गांजा तस्कर की गिरफ्तारी की गई हो। बल्कि यदि किसी गांजा तस्कर या अन्य किसी तरह के अवैध कारोबार की शिकायत आमजन द्वारा दी जाती है तो पुलिस एकाएक शिकायत के विरोध में खड़ी हो जाती है। पब्लिक की शिकायत पर शायद पुलिस को अपनी तौहीन महसूस होती है।

 

अब इसका कारण क्या हो सकता है ? ये समझ से बाहर है। लेकिन जब पुलिस खुद कुछ गांजा तस्करों को गिरफ्तार करके उनके फोटो, वीडियो व अधिकारियों की बाइट के वीडियो जारी करती है। कई बार तो प्रेस कॉन्फ्रेंस तक करके यह साबित करने की कोशिश करती है कि पुलिस गांजा तस्करों को लेकर सख्त कार्रवाई कर रही है। पुलिस ऐसे करके जनता को यह संदेश देने की कौशिश करती है कि पुलिस जिले से गांजा तस्करी को खत्म कर देगी।

 

अखबारों में सोशल मीडिया वेबसाइटों पर पुलिस द्वारा दी गई इस तरह की खबरों को पढ़कर कई बार कुछ आमजन में भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि पुलिस वास्तव में गांजा तस्करी के खिलाफ अभियान चला रही है। जिसके चलते कुछ आमजन, समाजसेवी, पत्रकार भी टि्वटर आदि पर अपने आसपास हो रही गांजे की बिक्री व दूसरे मादक पदार्थों की बिक्री को लेकर पुलिस को सूचना दे देते हैं। जिसके बाद ऐसी सूचनाओं के सार्वजनिक होने पर पुलिस का जो रवैया देखने को मिलता है उसे देखकर यह साबित हो जाता है कि पुलिस किसी नए अधिकारी के आने मात्र से खानापूर्ति के लिए हर थाना क्षेत्र से दो, चार गांजा तस्करों को गिरफ्तार कर आमजन व अपने अधिकारियों की नजर में अपने चेहरे पर भ्रष्टाचार और गैरकानूनी गतिविधियों की कालिख को पोंछ रही है। जिसको अधिकारी भी भलीभांति समझते हैं। इस तरह कुछ गिरफ्तारियां करके पुलिस यह साबित करने में लगी रहती है कि जिले से गांजा तस्करों का सफाया करने की कार्रवाई की जा रही है।

 

जन शिकायतों के आधार पर कभी भी पुलिस किसी भी अवैध धंधे में लिप्त व्यक्ति के वीडियो आदि देने के बावजूद भी कार्यवाही नही करती है। बल्कि पुलिस द्वारा जन शिकायतों को किसी न किसी तरह से झूठा साबित कर दिया जाता है। जो इस बात का पुख्ता सबूत होता है कि पुलिस खानापूर्ति के लिए ही कुछ छोटे-मोटे अपराधियों को गिरफ्तार करती है। जन शिकायतों पर पुलिस के रवैयें को देखकर यह कहने की बिल्कुल कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है कि पुलिस की अवैध कारोबारियों के साथ सांठगांठ होती है।

ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आई हुए शिकायतों पर पुलिस को उनके निस्तारण में अपराधियों की वकालत करते हुए देखकर सर्वजनिक रूप से इस बात का आभास होता है कि पुलिस स्वयं अवैध कारोबारियों से जुड़ी हुई होती है। कई बार तो यदि शिकायतकर्ता कोई सामान्य व्यक्ति या कमजोर प्रवृत्ति का है तो पुलिस शिकायतकर्ता पर झूठी शिकायत करने, पुलिस की बदनामी करने आदि के मुकदमे दर्ज कर देती है। गौतमबुद्धनगर ये कोई नई बात नही है। जब पुलिस की अपराधियों से मिली भगत और गैरकानूनी गतिविधियों को उजागर करने पर पत्रकारों पर मुकदमें दर्ज किए गए हैं ।

 

कई मामलों में तो पुलिस जन सामान्य और पत्रकारों को फर्जी मामले में फंसा कर खुला संदेश प्रचारित करती है कि पुलिस के मामलों में हस्तक्षेप करोगे तो फर्जी मुकदमें भी दर्ज होंगे और जेल भी जाओगे। ऐसे मामलों की लंबी फेहरिस्त है। बीते वर्ष पत्रकार अनुज गुप्ता पर पुलिस की गांजा तस्करों से संलिप्तता को खोलने वाले एक वीडियो के कारण मुकदमा दर्ज किया गया । ये सवाल हम गणतंत्रता दिवस पर विशेष रूप से इस लिए उठा रहे हैं क्या गणतंत्रता दिवस और स्वतंत्रता दिवस मात्र एक औपचारिकता है। पुलिस को अपराध की सूचना देना और पुलिस की गैरकानूनी गतिविधियों को बेनकाब करने अपराध है ? क्या पत्रकार सिर्फ पुलिस विभाग और सूचना विभाग की विज्ञप्तियों को प्रकाशित करते हुए पुलिस के जयकारे लगाने तक सीमित हो जाएं?

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