पुलिस का भ्रष्टाचार
70 हजार डकार चुके दरोगा वारिस खान को 50 हजार और न मिले तो गरीब को बनाया गुंडा
मामले में दरोगा वारिस खान की भूमिका संदेहास्पद
बदायूं पुलिस के दरोगा वारिस खान गरीब ई-रिक्शा वाले को भी नही बक्शा आखिरकार धारा 151,107,116 से शुरू करके IPC की धारा 354,452 से गुंडा एक्ट तक में कर दी कार्यवाही। इस तरह मामले में कई पेंच है। आप भी देखें।
पीड़ित ने दरोगा वारिस खान को भी दिए थे 70 हजार। अब जब पीड़ित को पता चला है कि उसके बेटे को दरोगा वरिस खान और विपक्षियों ने मिलकर फंसा दिया है तो खुल रहे हैं दरोगा वारिस खान के भ्रष्टाचार के राज, एक ई-रिक्शा वाले पिता ने अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित बचाने के लिए कर्ज लेकर लाखों रुपए खर्च कर दिए। जिसमें से पीड़ित द्वारा जानकारी दी गई है कि उसने एक लाख रुपए विपक्षी को 70 हजार उत्तर प्रदेश पुलिस के दरोगा को दे दिए। एक नजर पूरे मामले पर डालें।
बदायूं। पीड़ित चंद्रपाल व उसका परिवार जनपद बदायूं के बिसौली थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम लक्ष्मीपुर में रहते हैं | दिनांक 27-05-2022 को पीड़ित चंद्रपाल के बच्चों में और एक मुस्लिम परिवार के बच्चों में कहा सुनी हुई और झगड़ा हो गया जिस पर चौकी इंचार्ज वारिस खान ने दिनांक 27-05-2022 को पीड़ित के बेटे अंकित का धारा 151/107/116 में चालान कर दिया। अंकित मजदूरी के साथ बी ए की भी पढ़ाई कर रहा है। पीड़ित ने अपने बेटे की जमानत करा ली |
इसके ठीक तीन दिन बाद, दिनांक 30-05-2022 को पीड़ित के बेटे अंकित पर धारा 354 IPC और 452 IPC में प्राथमिकी दर्ज कर दी गई और जाँच के नाम पर पीड़ित से रुपयों की डिमांड की गई पीड़ित से चौकी इंचार्ज वारिस खान ने 70,000/- रुपये उसे मुकदमें के नाम पर वसूल लिए जिसके लिए पीड़ित को चौकी इंचार्ज ने बताया था कि 50,000/- रुपये तो थाना प्रभारी और बड़े अधिकारियों को चले गए। मुझे तो केवल 20 हजार ही मिलें हैं। इस लिए मुझे 50 हजार रुपए और देने पड़ेंगे।
दरोगा वारिस खान को मुंह मांगें पैसे नही मिले तो गुंडा एक्ट की संतुति कर दी
ई-रिक्शा चला कर परिवार चलाने वाला चंद्रपाल बेहद गरीब हैं। जो ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। उसके बच्चे भी मजदूरी वगैरह करके अपने परिवार को चलाने में सहायता करते हैं। इसलिए पीड़ित चंद्रपाल ने चौकी इंचार्ज से रुपये देने में असमर्थता जताई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी दूसरी ओर चौकी इंचार्ज वारिस खान के मुँह खून लग चुका था। जिसके चलते चौकी इंचार्ज कहाँ मानने वाला था। चौकी इंचार्ज वारिस खान ने कुछ दिन बाद ही नियमों का उल्लंघन करके सिर्फ एक ही एफआईआर पर गुंडा एक्ट की संतुति करके एडीएम बदायूं के यहाँ भेज दी गई |
पीड़ित क्या करें ? किस पर भरोसा करें ? हर कोई कानूनी अज्ञानता का लाभ उठाता है। ये मामला तो एडीएम के समक्ष ही समाप्त हो जाएगा, छोटे से मामले में पीड़ित हाईकोर्ट तक पहुंच गया फिर भी कुछ हाथ नही लगा । इस तरह के मामलों में कानून अज्ञानता के कारण पीड़ितों के साथ समस्या और भी बढ़ जाती है ~ संजय भाटी
पीड़ित को कानूनी ज्ञान न होने की वजह से पीड़ित ने एडीएम के समक्ष पेश होकर अपना जबाब दाखिल करने की वजाय मा. उच्च न्यायालय का रुख किया और मा. उच्च न्यायालय ने पीड़ित को अपना जबाब एडीएम के समक्ष दाखिल करने के लिए कहा और सम्बंधित अथॉरिटी को आदेशित किया कि आप नियमानुसार कार्यवाही करें और पीड़ित ने प्रार्थना पत्र किसी से लिखाकर आर्डर की कॉपी के साथ एडीएम ऑफिस गया और लेकिन वहां प्रार्थना पत्र व् आर्डर लेने से मना कर दिया, तब पीड़ित ने उक्त प्रार्थना पत्र, याचिका की कॉपी और मा. उच्च न्यायालय के आदेश की कॉपी लगाकर इंडिया पोस्ट द्वारा रजिस्ट्री की है।
बेलगाम दरोगा वारिस खान इतने पर भी नही रुक रहा है
जब चौकी इंचार्ज को यह पता चला तो पहले तो फैसले का दबाब बनाया लेकिन जब पीड़ित ने कहा कि हमें मा. न्यायालय पर भरोसा है तब आज चौकी इंचार्ज पीड़ित के दूसरे बेटे को धमकाकर बोला कि इस बार तुझे बंद करूँगा और जेल भेजूंगा। फिर भी बात नही बनी तो दरोगा वारिस खान ने पीड़ित को फ़ोन करके धमकाया कि कल तक मुझे अंकित लाकर दो नहीं तो अच्छा नहीं होगा |
इस फर्जी मुक़दमे के चक्कर में पीड़ित 2-3 लाख रुपये कर्जे में डूब चुका है। अब उसके पास पुलिसिया आतंकवाद से बचने के लिए आत्महत्या के अलावा कोई उपाय नहीं है। उत्तर प्रदेश में ऐसे अनगिनत मामले हो चुके हैं जब पीड़ितों ने परेशान हो होकर आत्महत्याएं की हैं।
सात साल सजा तक के मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने थाना स्तर पर ही मुचलके/जमानत भर कर छोड़ने का प्रावधान किया गया है। फिर भी पुलिस अपनी वसूली को बरकरार रखने के लिए कोई न कोई ऐसे हथकंडे लगाती है जिससे अशिक्षित और गरीब लोगों को प्रताड़ित कर वसूली की जा सके।