कोर्ट/कचहरी
सट्टे की खाईबाडी और गांजा तस्करी के लिए पुलिस और पत्रकार दोनों ही जिम्मेदार
देश के नौजवानों को नशे और बर्बादी में धकेलने में पुलिस और पत्रकारों का बराबर का हाथ होता है ~ संजय भाटी

संजय भाटी/मधु चमारी/राजा मौर्या
हम जो कुछ भी कहते हैं वह ऐसे ही नही कहते हर बात का पुख्ता सबूत मौजूद है। 5 जनवरी 2016 को गांजा, अवैध शराब तस्करों व सट्टा संचालकों की शिकायत न केवल तहसील दिवस दादरी गौतमबुद्धनगर में दी गई थी। बल्कि इससे पहले भी 21/12/2015 को थाने और पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर व जिला अधिकारी को शिकायत दी गई थीं। जिसकी खबरें पहले से ही प्रकाशित की गई थी। तहसील दिवस में भी शिकायत के साथ सुप्रीम न्यूज अखबार की प्रति संलग्न की गई थी।
निचे दिए गए ट्विटर लिंक में विडियो देखिए।
सुप्रीम न्यूज के दोनों संपादक दादरी की परेशान जनता के साथ तहसील दिवस 05/01/2016 में शिकायत देते हुए।
5/1/16 को तहसील दिवस में शिकायत देकर जा रही सुप्रीम न्यूज की संपादक मधु जी पर फोन कर रहे CO दादरी ने SO/CI से फोन कर गांजा तस्करों व सट्टे का धंधा करने वालों से हमला व लूट पाट करवा कर, सट्टेबाजों से तहरीर लेकर FIR दर्ज कर धारा 354 D,223,504,506 व ScSt Act 3 (1)10 में चार्जशीट भेजी थी
सुप्रीम न्यूज के संपादकों का कॉन्फिडेंस का लेवल हाई होने के बड़े कारण ईमानदारी,सच्चाई,कानूनी ज्ञान,न्यायालय पर भरोसा
रिकॉर्ड देखें
12:15 की घटना, घटना स्थल एक किलोमीटर दूरी पैदल चलकर टाईप शुदा प्रार्थना पत्र लेकर, तहसील दिवस में SDM से शिकायत करने के बाद केवल 15 मिनट में थाने पहुंच गए सट्टेबाज
संपादक की जमानत🤣हो गई
निचे दिए गए ट्विटर लिंक में विडियो देखिए।
https://twitter.com/SupremeNewsG/status/1643843570544287745?t=eKwrMnlt7MG46zse_SnlcQ&s=19
गौतमबुद्धनगर। जिले में आए दिन पुलिस द्वारा गांजा तस्करों व खाईबाडी करने वाले लोगों को कहीं ना कहीं से गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है। जिले की पुलिस किसी किसी दिन तो जिले भर के थाना क्षेत्रों से दर्जनों गांजा तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। इसके बाद भी ये गांजा तस्कर जेल से जमानत पर बाहर आते ही फिर से गांजा तस्करी करने लगते हैं। जबकि NDPS Act अपने आप में बहुत प्रभावी कानून है। हम कानून में कमी निकाल कर पुलिस की बदनियती का ठीकरा कानून पर नही फोड़ना चाहते।
खाईबाडी करने वालों से पुलिस की मंथली दो लाख तक
अब हम जुआ, सट्टा यानी खाईबाडी करने वाले संगठित गिरोह की बात कर रहे हैं। इस मामले में हमारे कानून भी बहुत कमजोर हैं। लेकिन इतने कमजोर भी नही है कि पुलिस चाहें तो सट्टा/जुआ यानी खाईबाडी बंद न कराई जा सके। वैसे एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि सट्टेबाजी करने वाले लोगों को गिरफ्तारी अधिकतर थाने चौकी की मंथली को इम्प्रूव करने के लिए किया जाता है। ना की सट्टे को पूरी तरह से बंद कराने के लिए। आमतौर से एक खाईबडी करने वाले से गौतमबुद्धनगर में दो लाख रुपए मंथली है। कहीं-कहीं धंधे के हिसाब से कम या ज्यादा भी हो सकती हैं।
पत्रकारों के पेट भी खाईबडी और गांजा तस्करों द्वारा ही भरे जाते हैं या फिर डरते हैं पत्रकार?
वैसे तो इस तरह के संगठित अपराध को बढ़ावा देने में पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन स्थानीय पत्रकारों के घर भी इन्हीं गांजा तस्करों व खाईबाडी करने वाले लोगों से मिलने वाली सुविधाओं से चलते हैं। कुछ पत्रकारों द्वारा इस तरह के अपराधियों को इतना संरक्षण दिया जाता हैं कि वे इन गांजा तस्करों और खाईवाडी करने वाले लोगों के लिए अपनी जान लड़ा देते हैं। आमतौर से पत्रकारों द्वारा दो से पांच हजार महीने में किसी भी गैरकानूनी धंधे के संचालकों को न केवल क्लिन चिट दे दी जाती है। बल्कि अपराधियों को वरिष्ठ समाजसेवी या नेता साबित करने के लिए खबरें प्रकाशित कर दी जाती है।
पुलिस व पत्रकारों का गैरकानूनी धंधों के संचालकों को इतना जबरदस्त आशिर्वाद होता है कि यदि कोई भी गांजा तस्करों और खाईवाडी करने वाले अपराधियों की ओर उंगली उठाता है तो वह खुद जेल पहुंच जाता है। सीधा मतलब यह है कि पुलिस और पत्रकार दोनों ही न केवल देश की जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं बल्कि अपनी जेब भरने के लिए आम जन को नशे और बर्बादी की ओर धकेल रहे हैं।
समाज सेवी संस्थाओं और राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोग भी पुलिस और पत्रकारों से किसी भी तरह से कम नही है। इन पर किसी दिन फिर चर्चा करेंगे।