मीडिया और पुलिस

गौतमबुद्धनगर पुलिस का अवैध धंधों से अवैध वसूली के लिए मीडिया मैनेजमेंट ! कानून की मदद से जल्द इसे तोड़ेंगे – संजय भाटी

गौतमबुद्धनगर अवैध धंधों के अड्डे में तब्दील

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  • सुप्रीम न्यूज। नोएडा। जिला गौतम बुद्ध नगर में पुलिस द्वारा मीडिया मैनेजमेंट बहुत मजबूत तरीके से किया गया है। नोएडा मीडिया क्लब में पहुंचे सुप्रीम न्यूज में संपादक श्री संजय भाटी से पत्रकारों को बहुत उम्मीदें।
  • नोएडा मीडिया क्लब सैक्टर 29 में आयोजित भाई जयप्रकाश सिंह के जन्मदिन में शामिल होकर लौटे सुप्रीम न्यूज के संपादक संजय भाटी व उनके साथियों से नोएडा मीडिया क्लब में नोएडा के बहुत से पत्रकारों से उनकी जो बातचीत हुई हैं । इस सब बातचीत की जानकारी करने का मौका आज सुबह-सुबह मिला तो संजय भाटी व अन्य ने बताया कि मीडिया क्लब में बहुत से ईमानदार पत्रकारों से चर्चा के दौरान हमें जानकारी हुई कि पुलिस द्वारा मीडिया मैनेजमेंट बहुत मजबूत तरीके से किया गया है। जिले में पत्रकारों का एक धड़ा पुलिस के साथ मिलकर अवैध वसूली के लिए अवैध धंधों को संरक्षण दे रहा है। चर्चा में शामिल सभी पत्रकारों ने इसे तोड़ने की उम्मीद जताते हुए बातचीत की। जनहित में पत्रकारिता करने की योजना पर कार्य किया जाएगा।
  • जिले के बहुत से पत्रकारों ने सुप्रीम न्यूज के संपादक श्री संजय भाटी से पुलिस और मीडिया मैनेजमेंट के चलते पत्रकारिता को गर्त में धकेलने वाले कुछ पत्रकारों के विषय में भी भाई जयप्रकाश सिंह के जन्मदिन पर पहुंचे पत्रकारों से चर्चा हुई है। जल्द ही इस मीडिया मैनेजमेंट को तोड़ कर पुलिस व मीडिया की गैरकानूनी गतिविधियों को जनहित में उजागर किया जाएगा।
  • यहां हम आपको मीडिया मैनेजमेंट के बारे में कुछ जानकारी दे रहे हैं कि आखिर क्या है? पुलिस द्वारा इसे क्यों और कैसे किया जाता है?
  • पुलिस के मीडिया मैनेजमेंट के दो तरीके होते हैं एक तो मीडिया को भयभीत कर मीडियाकर्मियों को अपने चंगुल में फंसाकर वह डरा कर रखा जाता है। यह तरीका उन जगहों पर अपनाया जहां पत्रकारों की संख्या व उनके पास संसाधनों की उपलब्धता बहुत कम होती है। ऐसे स्थानों पर पत्रकारों पर पूरी तरह से झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें भयभीत कर पुलिस अपने चंगुल में लेकर पत्रकारों से दलाली और मुखबिरी करवाती है। मतलब साफ है जो पुलिस के मुताबिक कार्य करने लगते हैं। पुलिस उन्हें सम्मान देकर समाज में स्थापित कर देती है।
  • दूसरे वे स्थान होते हैं जहां पत्रकारों की संख्या अत्यधिक होने के साथ-साथ पत्रकारों के पास संसाधनों की प्रचुरता होती है । जैसी स्थिति हमारे जिले गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद आदि में है । यहां के अधिकांश पत्रकारों के पास संसाधनों की कोई कमी नही है। आधे से अधिक तो अपने मीडिया संस्थानों के मालिक ही हैं। अब ऐसे जिले में पुलिस का मीडिया मैनेजमेंट पुलिस को प्राप्त अधिकारों व वैज्ञानिक और असंवैधानिक साधनों से मीडिया से जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की नीति का प्रयोग किया जाता था।
  • इसका मतलब साफ है कि पुलिस किसी भी तरह से गैरकानूनी गतिविधियों और अवैध उगाही में हिस्सेदारी देकर या पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर अधिकांश को अपने साथ शामिल कर ही लेती हैं।
  • लेकिन इस सब के बाद भी कुछ ऐसे पत्रकार रहते हैं जो हमेशा पुलिस व पुलिस के समर्थक पत्रकारों को चुनौती देते रहते हैं। वैसे ये कई स्तरों पर तो बहुत कमजोरी की स्थिति में होते हैं। एक तो इन विद्रोही पत्रकारों की संख्या बहुत कम होती है। दूसरे इन्हें कभी भी मीडिया की आधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त मीडिया संस्थानों का सपोर्ट नही मिलता । क्योंकि बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों का उद्देश्य आर्थिक और राजनीतिक लाभ कमाना होता है।
  • अब आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि पुलिस के मीडिया मैनेजमेंट के कारण ईमानदारी से पत्रकारिता करने में सबसे बड़ी चुनौती उन पत्रकारों से होती है जो पुलिस मैनेजमेंट का हिस्सा हैं। मतलब ईमानदारी से पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की लड़ाई हमेशा दो मोर्चों पर चलती है। बस आप यही सोच रहे होंगे।
  • वास्तविक सच्चाई तो इससे भी ज्यादा भयावह है। कम शब्दों में कहें तो जनहितों के लिए पत्रकारिता करना। चौतरफा लड़ाई है। क्योंकि मीडिया और पुलिस द्वारा अवैध हिरासत, मादक पदार्थों की बिक्री, सट्टा जैसे अवैध धंधों से जो अवैध वसूली की जाती है । इस में से बहुत व्हाईट कॉलर लोग हितबद्ध होते हैं।

आगे मिलते हैं।

मधु चमारी ~ संपादक सुप्रीम न्यूज supremenews72@gmail.com

 

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